जब समाज आम बोलचाल में अपमानजनक शब्दों से संबोधित करता था। यह देखकर मुंशी जी बहुत व्यथित हुए। उन्होंने उत्तराखंड में शिल्प का कार्य करने वाली निम्न जाति के लोगों को शिल्पकार नाम की संज्ञा प्रदान की। 1927 में उनके अथक प्रयासों व संघर्षों से शिल्पकार नाम को सरकारी मान्यता मिली। अथक प्रयास कर उन्होंने निम्न जाति के लोगों को सम्मान दिलाया।
1924 में मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने उत्तराखंड में शिल्पकारों का वृहद सम्मेलन आयोजित किया। जिसके बाद कुमाऊं शिल्पकार सभा का जन्म हुआ। उन्हीं के प्रयासों से 1930-40 के मध्य कुमाऊं-गढ़वाल में भूमिहीन शिल्पकारों को ब्रिटिश सरकार ने 30 हजार एकड़ कृषि भूमि वितरित की।
उन्होंने शिक्षा की अलख जगाने के लिए शिल्पकार सभा के माध्यम से 150 प्राथमिक और प्रौढ़ पाठशालाओं की स्थापना की। इनके सेवाभाव को देखते हुए अंग्रेजों ने इन्हें 1935 में रायबहादुर की उपाधि दी। दलितों को समाज में सम्मानजनक स्थित दिलाने व उनके उत्थान के लिए अथक काम के लिए इन्हें उत्तराखंड का आंबेडकर भी कहा जाता है।
ब्रिटिश सेना में शिल्पकार वर्ग की भर्ती नहीं हुआ करती थी। उन्हें डरपोक जाति समझा जाता था। लेकिन इसके लिए मुंशी जी ने लंबा संघर्ष किया। द्वितीय विश्व युद्ध में पांच हजार शिल्पकारों से पायनियर बटालियनों का निर्माण किया गया। मुंशी जी ने ही बताया कि यह जाति बंदूक बनाना व चलाना दोनों जानती है। जिसके बाद से शिल्पकारों की सेना में भर्ती होने लगी।
शिल्पकार समाज के शोषण और उत्पीड़न के खात्मे के लिए मुंशी हरि प्रसाद टम्टा ने समता नाम साप्ताहिक पत्र निकाला। यह अखबार शोषित, वंचितों की आवाज बना। इसके लेखों ने राजनीतिक व सामाजिक जागरूकता फैलाई। 23 फरवरी को 1960 में उनकी मृत्यु हो गई। वह राजनीतिक सफर आल इंडिया डिप्रेस्ड क्लास ऐसोसिएशन की उप्र शाखा के उपाध्यक्ष- 1934-40 तक गोंडा संयुक्त प्रांत की विधानसभा से निर्विरोध निर्वाचित- 1937 नगरपालिका अल्मोड़ा के चेयरमैन- 1945 में बने।
"ऐसे महान सामाजिक क्रन्तिकारी युगपुरुष को सादर नमन।"
सर्वेश अंबेडकर
पूर्व दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री
सह उपविजेता कायमगंज विधानसभा