भभुआ जिला परिषद् विकास सिंह जी ने बड़े दुःख के साथ सूचित किया कि विजयदशमी के दिन उनके पिता जी विजय सिंह जी की मृत्यु हो गयी.
मृत्यु एक बहुत मूल सवाल है। वास्तव में मृत्यु के जो आंकड़े हमें पता चलते हैं, उसकी तुलना में, मृत्यु हमारे ज्यादा पास है। हर एक पल में हम मर रहे हैं, अंगों और कोशिकाओं के स्तर पर। यही वजह है कि डॉक्टर आपके अंदर देख कर ही आपकी उम्र बता देता है। सही बात तो ये है कि हमारा जन्म होने से भी पहले हमारे अंदर मृत्यु की शुरुआत हो जाती है। अगर आप अज्ञानी और अनजान हैं, तो ही आपको ऐसा लगता है कि मृत्यु बाद में किसी दिन आयेगी। अगर आप जागरूक हैं तो आप देखेंगे कि जीवन और मृत्यु, दोनों ही, हर पल में हो रहे हैं। अगर आप बस इतना ही करें कि थोड़ी ज्यादा जागरूकता के साथ साँस लें तो आप देखेंगे कि हर ली हुई साँस जीवन है और छोड़ी हुई साँस मृत्यु है।
अगर आप बस इतना ही करें कि थोड़ी ज्यादा जागरूकता के साथ साँस लें तो आप देखेंगे कि हर ली हुई साँस जीवन है, और छोड़ी हुई साँस मृत्य है। जन्म होने पर, पहला काम जो एक बच्चा करता है वो है साँस लेने का, हवा का दम लेने का। और, अपने जीवन का आखिरी काम जो आप करेंगे वो होगा साँस छोड़ने का। आप साँस छोड़ेंगे और फिर, अगर आप अगली साँस नहीं लेंगे तो आप मर जायेंगे। अगर ये बात आपको अभी समझ में नहीं आ रही है तो बस साँस छोड़िये और अपनी नाक को बंद कर लीजिये। कुछ ही सेकंड्स में आपके शरीर की हर कोशिका जीवन के लिये चीखना शुरू कर देगी। जीवन और मृत्यु हर समय हो रहे हैं। वे, बिना एक दूसरे से अलग हुए, एक साथ रहते हैं, एक साँस के जैसे। यहाँ तक कि उनका ये संबंध साँस से भी आगे जाता है, वो साँस से भी परे है। साँस तो बस एक सहायक भूमिका में है। वास्तविक काम तो जीवन ऊर्जा का है, जिसे हम प्राण कहते हैं और जो हमारे भौतिक अस्तित्व को काबू में रखती है। प्राण पर एक खास महारत हासिल कर के हम, काफी समय तक, साँस से परे जा कर भी जीवित रह सकते हैं। हालाँकि साँस की ज़रूरत शरीर को हर पल होती है, पर वैसे ही जैसे भोजन और पानी की है।