केन्द्रस्थ : Catching hold of Nucleus : MMITGM : (132) :
आकाश के सहस्त्रों तारों से, संतुलित ब्रह्माण्ड के समस्त पिण्डों के कण-कण में न्यूट्रॉन की उपस्थिति से, एक न्यूट्रॉन में सुसुप्त प्रचंड गामा-रे की शक्ति से, कोरोना वायरस सदृष्य अनंत वायरसों की शक्ति से, ब्रह्म को तत्व से जानने की झलक है. इसका अभ्यास अपने अंतस्थल के अहं भाव रूपी दबाव को निर्मूल करना है. ब्रह्म-तत्व-दर्शन से अपने आप को निर्लिप्तता में प्रतिष्ठित कर शांति-शक्ति से महिमामंडित करना है.
हे कोरोना वायरस रूपी डमरू को डमडमाते हुए चेतना-जागृत करने वाले भोलेनाथ! आपको तत्व से जानना क्या है? आप मानव-शरीर धारी और परिवार वाले हैं, फिर आप को तत्त्व से जानना क्या है? क्या मानव दिखावटी रूप है? क्या न्यूट्रॉनमय ब्रह्मांड आपका शरीर है? आखिर ब्रह्मांड है क्या? यह अनन्त और दिव्य सुन्दर कैसे? इसका सब कुछ सुसज्जित, सुव्यवस्थित और पूर्ण संतुलित क्यों है? यह निश्चित आपका शरीर है. इस शरीर के अनन्त आकाश में चमचमाते करोड़ों तारागण हमें क्या कहते हैं? क्या ये चैलेन्ज करते कहते "हमें समझो तो जाने, हम कौन, कैसे, किस आकार, शक्ति और कैसे तुम्हें प्रभावित करने वाले तुम्हारे अंग, कौन हैं? इन प्रश्नों से निरूत्तर होना क्या आपके तत्व का a, b, c, d तक नहीं जानना नहीं है?
ब्रह्मांड के समस्त पिण्डों के हरेक एटम में न्यूट्रॉन रूप में विराजमान आप ब्रह्माण्ड-शरीर धारी नहीं हैं क्या? इस न्यूट्रॉन के गामा-रे आपके शरीर के एक सबसे सूक्ष्म कण का शक्ति नहीं है. क्या सूर्यमण्डल जो एक तारा है और जिसका केन्द्र सूर्य जो पृथ्वी से तीन लाख गुणा बड़ा है आपके शरीर की एक कोशिका है? और उसको जान पाना क्या आप के विषय-तत्व में से कुछ को जानना है? पृथ्वी सूर्यमंडल का एक ओरगन है तो आपके शरीर, ब्रह्माण्ड, का एक एटम मात्र ही है. श्रीमान भोलेनाथ! यह तो आपके शरीर के आकार का सूक्ष्म ज्ञान है और इसके भीतर जो निरंतरता से बदलती चहुंमुखी शक्ति-तरंगें प्रवाहित होती रहती हैं, उनको तत्त्व से कौन जान सकता है? अतः आपके विषय में तत्त्व से कुछ जानना उसी को संभव है जिसको आप चाहें. अतः निर्विवाद आप संतुलित ब्रह्मांड रूप-शरीर हैं. इसमें न कहीं से कुछ आना और न यहाँ से कहीं कुछ जाना, इसमें न इनफ्लो है और न आउट-फ्लो है. अतः समस्त कार्य इसके भीतर स्वतः होते रहते हैं. तब बाहर से कुछ आने का प्रश्न ही नहीं. यही है आपको किसी चीज की स्पृहा का नदी होना और यही है किसी कर्म को आपको लिप्त नहीं कर सकना. और हम आपके भीतर अवस्थित आपके हैं, इसलिये समस्त चीजों की आपूर्ति हमारे लिये स्वतः होते रहना अवश्यंभावी है. ऐसी स्थिति में हमारे समस्त स्पृहा आपकी है ? अतः हमारी सत्य-प्रतिष्ठित एक अवधारणा हम आपके संतुलित शरीर के अंश हैं, न ऊधो से लेना न माधो को देना है. हमारे समस्त कार्य आपका, आपके द्रारा और आपके लिये है. यही भगवान श्रीकृष्ण कह रहे हैं..
न मां कर्माणि लिम्पन्ति न में कर्मफले स्पृहा । इति मां सोअ्भिजानाति कर्मभिर्न स वध्यते ।। गीता : 4.14 ।।
कर्मो के फल में मेरी स्पृहा नहीं है, इसलिये मुझे कर्म लिप्त नहीं करते. इस प्रकार जो मुझे तत्त्व से जान लेता है वह भी कर्म से नहीं बँधता है.
हे भोलेनाथ ! आपको तत्व से जानने की व्याख्या से वेद-पुराण-उपनिषद भरे पड़ें हैं. यह आपके विषय का ज्ञान है, इसे तत्व से जानना तो नही कहेगें. यह जानने के लिये आपने प्रैक्टिकल रूप से क्या दिखाया है. क्या आप को अपनी जटा को खोलना और उससे गंगा को प्रवाहित कर देना यही था? क्या इतने पर भी आप के तत्व को नहीं जानना महा अंधकार कोरोना वायरस नहीं है?