"तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा" का नारा देकर भारत की आजादी की भावना को नई शक्ति, नया प्राण और दिशा देने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी, माँ भारती के लाल सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर कोटि-कोटि नमन. हम सभी भारतवासियों को ऐसे प्रबुद्ध स्वतंत्रता सेनानी पर गर्व है और हम सभी आपके कृतज्ञ है.
ज्ञात हो कि आज हम नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती मना रहे हैं और समस्त देश उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है. आज हमें मिली स्वतंत्रता और गणतंत्र हमारे इन्हीं महानायकों की देन है, इस आज़ादी को अलंकृत करने, आकार देने और मजबूत करने में हमारे पूर्वजों ने बहुत से कुर्बानी दी है. देश को आजादी दिलाने वाले महानायक सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे आजादी के सिपाही हैं, जिनका जीवन वैसे तो वीरता के किस्सों के साथ याद किया जाता है लेकिन संघर्ष के साथ जीवन रहस्यों के लिए नेताजी सुभाषचंद्र बोस का नाम सर्वप्रमुख रूप से आता है.
23 जनवरी 1897 को ओडिशा में जन्में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पहले भारतीय सशस्त्र बल की स्थापना की थी जिसका नाम आजाद हिंद फौज रखा गया था. 'तुम मुझे खून दो मैं, तुम्हें आजादी दूंगा' के बुलंद नारे से अनगिनत भारतीयों के दिलों में देशभक्ति की भावना अत्याधिक बलवती होती गयी. वर्तमान में भी उनका यह नारा देशवासियों के लिए प्रेरणादायक है. नेताजी एक महानायक ही नहीं बल्कि एक उच्च शिक्षित व्यक्ति भी थे, जिन्होंने वर्ष 1920 में इंग्लैंड से सिविल सर्विस परीक्षा पास की थी. स्वतंत्रता के इस महानायक को वर्ष 1920-30 के दशक में देश के सबसे प्रमुख युवा कट्टरपंथी नेताओं में गिना जाता था. आजाद हिन्द फौज के जरिये उन्होंने भारत को स्वतंत्रता दिलाने का भरसक प्रयास किया.
पूर्ण स्वराज के लिए कई बार जेल जाने वाले नेताजी का मानना था कि अहिंसा के जरिए स्वतंत्रता नहीं पाई जा सकती, साथ ही वह भागवत गीता को प्रेरणा का प्रमुख स्त्रोत मानकर चलते थे. ऐसे महान क्रांतिकारी और राष्ट्रवादी व्यक्तित्त्व को हम हार्दिक श्रृद्धासुमन अर्पित करते हैं.
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