समाजवाद के जनक डॉ राम मनोहर लोहिया एक राष्ट्रवादी नेता थे जिन्होंने, महज चार साल में भारतीय संसद को अपने मौलिक राजनीतिक विचारों से झकझोर देने का करिश्मा राम मनोहर लोहिया ने कर दिखाया था।
चाहे वो जवाहर लाल नेहरू के प्रतिदिन 25 हज़ार रुपये खर्च करने की बात हो, या फिर इंदिरा गांधी को गूंगी गुड़िया कहने का साहस रहा हो। या फिर ये कहने के हिम्मत कि महिलाओं को सती-सीता नहीं होना चाहिए, द्रौपदी बनना चाहिए।
राम मनोहर लोहिया वो पहले राजनेता रहे, जिन्होंने कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान करते हुए कहा था कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतज़ार नहीं करतीं।
उत्तर भारत में आज भी आप राजनीतिक रुझान रखने वाले किसी युवा से बात करें तो वो इस नारे का जिक्र ज़रूर करेगा- 'जब जब लोहिया बोलता है, दिल्ली का तख़्ता डोलता है।'
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सर्वेश अंबेडकर
पूर्व दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री/उपविजेता कायमगंज विधानसभा