लोकनायक जेपी नारायण का जन्म 11 अक्तूबर, 1902 में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था, शिक्षा के समय से ही उनमें देशप्रेम की भावना प्रबल थी और उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में भाग भी लिया। वह उच्च शिक्षा के लिए विदेश भी गये थे और शिक्षा का खर्च निकालने के लिए उन्होंने वहां खेत, होटल इत्यादि में काम भी किया, लेकिन अपनी माताजी का स्वास्थ्य खराब होने के चलते वह पीएचडी की डिग्री अधूरी छोड़कर भारत वापस आ गए।
अपने वतन में वापसी कर उन्होंने किसी प्रकार की नौकरी करने के स्थान पर स्वाधीनता आंदोलन का हिस्सा बनना तय किया। राजद्रोह के मुकदमे और जेल यात्रा भी की। उन्होंने सशस्त्र संघर्ष के लिए नेपाल जाकर "आजाद दस्ता" बनाया और गांधी जी व सुभाष चंद्र बोस के मतभेद मिटाने का भी प्रयास किया। उनके देशप्रेम के चलते उन्हें लाहौर की जेल में यातनाएँ भी सहनी पड़ी, किंतु उनके कदम कभी नहीं डगमगाए।
सक्रिय राजनीति के स्थान पर जेपी नारायण ने गया में विनोभा भावे के सर्वोदय आंदोलन में भागीदारी की और साथ ही आम जन के अधिकारों के लिए भी लड़ाई लड़ते रहे। 1974 के किसान आंदोलन में उनकी भूमिका अहम रही। साथ ही तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ भी उन्होंने देशव्यापी आंदोलन खड़ा कर दिया था। जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद भी लोकनायक जेपी नारायण ने किसी पद प्रतिष्ठा की इच्छा नहीं रखी क्योंकि उनका नारा "संपूर्ण क्रांति" का था और वह भारत की राजनीति में एक बड़ा परिवर्तन लाना चाहते थे।
8 अक्टूबर, 1979 को इस महान देशभक्त का देहावसान हो गया। 1999 में उन्हें मरणोपरांत "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त समाजसेवा के लिए उन्हें 1965 में मैगससे पुरस्कार प्रदान किया गया था, किसानों और निर्धनों को लेकर बिहार में क्रांति लाने का श्रेय देते हुए पटना के हवाई अड्डे का नाम जेपी नारायण के नाम पर रखा गया है। यहां तक कि देश की राजधानी दिल्ली में भी सरकार द्वारा स्थापित सबसे बड़े अस्पताल "लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल" का नाम भी उन्हें सम्मान देते हुए रखा गया।