लोकतांत्रिक और सामाजिक सुधारक के तौर पर विख्यात छत्रपति शाहू जी महाराज मराठा के भोसले राजवंश के राजा और कोल्हापुर की भारतीय रियासतों के महाराजा थे। उन्होंने शासक वर्ग का हिस्सा होने के बावजूद भी वंचित वर्गों की पीड़ा को आत्मसात किया और आजीवन शोषितों के उद्धार के लिए कार्य किया। अपने जीवनकाल में उन्होंने दलित वर्ग के बच्चों के लिए मुफ़्त शिक्षा की व्यवस्था की। बाल विवाह पर प्रतिबंध, विधवा पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता देना, बलूतदारी प्रथा (जिसमें किसी दलित वर्गीय व्यक्ति को थोड़ी सी जमीन देकर उससे व उसके परिजनों से समस्त गांव मुफ़्त सेवाएं लेता था) का अंत, वतनदारी प्रथा का अंत, पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण की सुविधा जैसे कईं समाज सुधार कार्य किए।
छत्रपति शाहूजी महाराज ने सामाजिक बुराइयों को जड़ से खत्म करने के लिए बहुत से तरीके अमल में लाए, वह बोलने से अधिक क्रियान्वयन में भरोसा रखते थे। उनका मानना था कि समाज आदेशों से नहीं बल्कि ठोस पहल से बदलता है, इसके लिए उन्होंने खुद अपने दलित मित्र की दुकान पर जाकर चाय पी और अपने को उच्च जाति का कहने वाले लोगों के सामने एक उदाहरण रखा। विकास के लक्ष्य के लिए शिक्षा और जागरूकता को सबसे बाद साधन मनाने वाले ऐसे परम समाज सुधारक को नमन है।