चौधरी चरण सिंह का ऐसा मानना था की देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों से होकर गुजरता हैं, उनका कहना था कि भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है। चाहे कोई भी लीडर आ जाए, जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे वह देश कभी तरक्की नहीं कर सकता। बात जब मेहनती किसानों के अधिकारों की रक्षा की आती थी तो उनका निश्चय दृढ़ था। चौधरी चरण सिंह जी ने वंचितों को सशक्त बनाने के लिए कठिन परिश्रम किया। आज चौधरी चरण सिंह की जयंती का दिन हैं, जिनकी स्मृति में राष्ट्रीय किसान दिवस मनाया जाता है। आज की ग्रामीण बदहाली, उपेक्षा, किसानों की आत्महत्याएं, गांवों से शहर की ओर बढ़ता पलायन, गांव-शहर के बीच बढ़ती आर्थिक-सामाजिक विषमताएं आदि विषय उनकी राजनीतिक विचारों की प्रासंगिकता को जीवित बनाए हुए हैं। स्वतंत्रता सेनानी से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक बने चौधरी चरण सिहं ने ही भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे पहले आवाज उठायी थी, कि भ्रष्टाचार का अंत ही देश को आगे ले जा सकता है। उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन के समय राजनीति में प्रवेश किया था। सन् 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के 'पूर्ण स्वराज्य' उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी को बनाया था।
सन् 1930 में महात्मा गांधी के चलाए सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल होकर उन्होंने नमक कानून तोड़ने को डांडी मार्च किया था। नमक बनाने की वजह से चौधरी चरण सिंह को 6 माह कैद की सजा हुई थी। जेल से वापसी के बाद चरण सिंह ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वयं को पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम में समर्पित कर दिया था। देश की आजादी के बाद वह राष्ट्रीय स्तर के नेता तो नहीं बन सके, लेकिन राज्य विधानसभा में उनका प्रभाव स्पष्ट महसूस किया जाता था. आजादी के बाद 1952, 1962 और 1967 में हुए चुनावों में चौधरी चरण सिंह राज्य विधानसभा के लिए चुने गए थे। इन्हें उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री का पद प्राप्त हुआ और साथ ही उन्होंने न्याय एवं सूचना विभाग संभाला। वह जमीन से जुड़े नेता थे और कृषि विभाग उन्हें विशिष्ट रूप से पसंद था।