प्रति वर्ष 4 जुलाई के दिन स्वामी विवेकानंद की पुण्यतिथि पर समस्त भारतवर्ष में उन्हें याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। यह दिन आधुनिक भारत के निर्माता माने जाने वाले स्वामी विवेकानंद को सम्मान देने हेतु उनके सिद्धांतों व आदर्शों को आत्मसात करने के रूप में देखा जाता है।
युवाओं की प्रेरणा स्वरूप स्वामी विवेकानंद के सिद्धांत और आदर्श आज भी युवाओं को आगे बढ़ने का प्रोत्साहन देते हैं। स्वामी विवेकानंद का दर्शन भारत के साथ साथ अन्य देशों में भी अपना एक खास प्रभाव रखता है। उनका मानना था कि युवा किसी भी देश का भविष्य होते हैं और देश की प्रगति की बागडोर उनके हाथों में होती है, इसलिए युवा वर्ग को अपने आदर्शों पर कार्य करना चाहिए और अपने अंतर्मन को अच्छे विचारों से परिपूरित कर मजबूत बनाना चाहिए।
12 जनवरी, 1863 में कोलकाता में जन्में स्वामी विवेकानंद के ओजस्वी विचारों ने पराधीन भारत में युवाओं को जागृत किया और उनमें नव ऊर्जा का संचार किया। "उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए", ऐसे प्रेरणादायक दर्शन को देने वाले स्वामी विवेकानंद न केवल एक महान दार्शनिक व विचारक थे अपितु उन्होंने समाज-सुधार की दिशा में भी अग्रणीय योगदान दिया, जिसे आज भी भारत का जन जन याद रखे हुए है। कहा जाता है कि जीवन के अन्तिम दिन यानि 4 जुलाई 1902 को 39 वर्ष की आयु में भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रात: दो-तीन घंटे तक ध्यान किया और ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर महासमाधि ले ली। उनकी अंत्येष्टि बेलूर में गंगा के तट पर चन्दन की चिता पर की गयी थी, इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरू रामकृष्ण परमहंस का सोलह वर्ष पूर्व अन्तिम संस्कार हुआ था।