"कर्म भूमि पर फल के लिए श्रम सबको करना पड़ता है, रब सिर्फ लकीरे देता है रंग हमको भरना पड़ता है.", ऐसे सदविचारों से परिपूर्ण सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्म दिवस समस्त देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. कार्तिक पूर्णिमा यानि दिवाली के ठीक 15 दिन बाद आने वाले इस उत्सव को विभिन्न रूपों से भारत में मनाया जाता है. यह पर्व मूल रूप से व्यक्ति के जागरण से जुड़ा है, स्वयं को प्रकाशित करने का पर्व है गुरु पर्व. वह गुरु जो हम सभी के मन-मस्तिष्क में विराजमान है और अच्छे-बुरे के प्रति हमारी समझ को विकसित कर हमें समाज के कल्याण का मार्ग दिखाता है, उसी गुरुत्व को सम्मान देने का पर्व है "प्रकाश पर्व".
वर्ष 1469 में ननकाना साहिब में जन्में गुरु नानक देव बाल्यकाल से ही संत स्वाभाव के थे और समाज की रुढ़िवादी विचारधारा का वह सदा विरोध करते थे. धर्म के नाम पर उक्त समय जो पाखंड समाज में फैला था, उन्होंने उसका घोर विरोध किया और लोगों को समझाया कि मूर्ति पूजा, बहुईश्वरवाद आदि पर समय व्यर्थ नहीं करके समाज को समान रूप से देखें, परमात्मा की साधना में तल्लीन होते हुए भाईचारे और सद्भावना के साथ जीवन व्यतीत करें.
हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक देव जयंती समस्त देश में मनाई जाती है और विशेष रूप से हमारे सिख भाई बहनों द्वारा भोर में प्रभात फेरी निकाली जाती है, कीर्तनों का आयोजन किया जाता है, गुरुग्रंथ साहिब पाठ का अयोजन होता है और लंगर बांटे जाते हैं. कार्तिक पूर्णिमा का दिन हिन्दू धर्म में भी बेहद खास माना जाता है, देवों को समर्पित यह दिन दीपदान, स्नान और दान से जुड़ा हुआ है. आज नदियों में नहान की विशेष परंपरा है और घाटों पर दीपदान का भी खास महत्त्व है. देखा जाये तो हमारी युगों प्राचीन नदी संस्कृति को दृष्टिगोचर करता है यह प्रकाश उत्सव और आत्म जगारण का एक सुंदर सन्देश भी पारित करता है.
आप सब भी प्रकाश और आत्म जागरण के इस उत्सव के विविध स्वरूपों को जाने, पहचाने एवं उनका मनन करें, जिससे गुरुनानक देव के सिद्धांतों पर चलकर हम भी समाज को एकसूत्र में पिरो सके. समाज को समानता, एकता और सद्भावना के मार्ग पर प्रशस्त कर अपने नैतिक कर्तव्यों का वहन जिस दिन हम सभी कर लेंगे, उस दिन वास्तव में हम प्रकाश पर्व मनाने के अधिकारी होंगे. इन्हीं मंगल कामनाओं के साथ आप सभी को प्रकाश पर्व की कोटि कोटि शुभकामनाएं.
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