भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी रहे राम मनोहर लोहिया का नाम देश के उन सम्मानीय राजनेताओं की फेहरिस्त में आता है, जिन्होंने अपने दम पर देश की राजनीति का रुख बदल दिया। ऐसे ही एक प्रखर राष्ट्रवादी नेता हैं राम मनोहर लोहिया, जिन्हें समाजवाद का जनक भी कहा जाता है। स्वतंत्रता आंदोलन के बाद भी उन्होंने देश की राजनीति में एक नव परिवर्तन लाने की हुंकार भरी।
23 मार्च 1910 को फैजाबाद में जन्में राम मनोहर लोहिया के पिता हीरालाल पेशे से अध्यापक थे और देशभक्ति के प्रति समर्पित व्यक्ति थे। वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के परम अनुयायी थे और गांधी जी से मिलने जाते समय वह बालक राम मनोहर लोहिया को भी अपने साथ ले जाया करते थे, जिसके चलते महात्मा गांधी के विराट दर्शन का प्रभाव बाल्यकाल से ही राम मनोहर लोहिया पर रहा।
कोलकता से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद लोहिया जी उच्च शिक्षा के लिए बर्लिन चले गए, जहां उन्होंने मात्र तीन माह में जर्मन भाषा में महारत हासिल करली थी। वह असाधारण प्रतिभा के धनी और एक प्रखर विद्वेता थे, जिन्होंने केवल दो वर्षों में ही अर्थशास्त्र में पीएचडी की मानद उपाधि प्राप्त कर ली थी। स्वदेश वापस आने के बाद उन्होंने आजादी की लड़ाई में भागीदारी देने का निर्णय लिया। एक समाजवादी नेता के रूप में उनका योगदान स्वतंत्रता आंदोलन में बहुत अहम रहा।
हालांकि वह काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे लेकिन अपनी पृथक समाजवादी अवधारणा होने के चलते उन्होंने काँग्रेस से दूरी बना ली। वर्ष 1956 में उन्होंने समाजवादी पार्टी के गठन किया था, जिसका विलय उन्होंने तीन वर्ष बाद ही संयुक्त समाजवादी पार्टी में कर दिया। भारतीय राजनीति में हर समस्या के प्रति लोहिया जी के विचार बिल्कुल स्पष्ट थे, जिसके कारण वह आज भी अनेकों लोगों की प्रेरणा हैं।
30 सितंबर, 1967 को लोहिया जी को बढ़े हुए प्रोस्टेट ग्लैंड के ऑपरेशन के लिए नई दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां ऑपरेशन के बाद फैले इन्फेक्शन के कारण 12 अक्टूबर 1967 को उनका देहांत 57 वर्ष की आयु में हो गया। जिस वेलिंगटन नर्सिंग होम में उनका निधन हुआ था, आज दिल्ली में उसे राम मनोहर लोहिया अस्पताल के नाम से जाना जाता है. हालांकि उनका इलाज जर्मनी के एक अस्पताल में होना था, जिसके लिए उन्हें उस समय 12 हजार रुपये की आवश्यकता थी। वह चाहते तो आसानी से यह रकम जमा कर सकते थे लेकिन अपने सिद्धांतों और उच्च विचारों के चलते उन्होंने पैसों के इंतजाम पर सख्त पाबंदी अपने सहयोगियों पर लगा दी थी।
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