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1968 की कोसी की बाढ़ और मूषक (चूहा) कथा
उस समय बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू था और विधानसभा स्थगित थी। अतः बिहार की इस अभूतपूर्व बाढ़ पर बहस लोकसभा में हुई थी। बहस में बोलते हुए गुणानंद ठाकुर ने, जो सहरसा जिले के बनैनिया (कोसी तटबंधों के बीच बसा यह गाँव अब पूर्णतया समाप्त हो चुका है और उस समय सहरसा जिले के सुपौल अनुमंडल में था) गाँव के रहने वाले थे, उनका कहना था कि, “शुरू से हम लोग कोसी में रह गये और डॉ. राव (डॉ. के.एल. राव जो उस समय केंद्र में सिंचाई मंत्री थे) की कृपा से सदा के लिये कोसी पीड़ित बना दिए गये। जो कोसी योजना बनी उसके लिये तो हम सरकार को बधाई देते हैं। लेकिन को सरकारी आंकड़े हैं, सरकार ने जो कोसी तटबंध के भीतर 300 गाँव के साढ़े तीन लाख लोगों को सदा के लिए उनकी किस्मत पर छोड़ दिया है उसकी हमें बड़ी चिंता है। किसी भी जनतांत्रिक सरकार को इसके लिये शर्म और लज्जा आनी चाहिये।”
सच यह था कि कोसी योजना में पुनर्वास का काम बड़ी मंथर गति से चल रहा था और उसमें भी बहुत से परिवार पुनर्वास में जाकर फिर तटबंधों के बीच अपने पैतृक गाँव में वापस लौट आये थे। ऐसे लोगों की हालत सांप – छंछून्दर जैसी हो गयी थी। घर छोड़ कर पुनर्वास में गये और वह रास नहीं आया तो फिर गाँव में लौटे। गुणानंद ठाकुर ने खालिस लखनवी अंदाज़ में कोसी के पश्चिमी तटबन्ध के दरभंगा के जमालपुर के पास जहाँ इस साल भी पश्चिमी तटबन्ध टूटा है, पांच जगह टूटने की केंद्रीय जल आयोग की तरफ से एक वरिष्ट इंजीनियर पी. एन. कुमरा जांच करने के लिये आये थे और उन्होंने तटबन्ध टूटने की इस घटना के लिये चूहों को जिम्मेदार ठहराया था जिनके बिलों के कारण नदी के पानी का रिसाव शुरू हुआ और तटबन्ध टूट गया। गुणानंद ठाकुर कुमरा साहब वाली रिपोर्ट पर भी जम कर बरसे। उन्होनें कहा कि, “ बहुत से संसद सदस्य उस इलाके में घूमे हैं और देखा है कि कोसी से बर्बादी हुई है लेकिन कुमरा साहब जब तटबन्ध टूटा उसके पांच दिन बाद वह रिपोर्ट करते हैं। कहते हैं कि सियार के छेड़ के कारण सरकार की यह योजना फेल कर गयी, पांच जगह। ज़रा बहानेबाज़ी देखिये। दरभंगा जिले की लाखों की पापुलेशन ख़तम हो गयी, हजारों एकड़ फसल बर्बाद हो गयी, पांच जगह सियार के छेद से तटबन्ध का यह हाल हो गया।”
गुणानंद ठाकुर ने तत्कालीन केन्द्रीय सिंचाई मंत्री डॉ. के. एल. राव को भी नहीं छोड़ा। उन्होनें आगे कहा कि, “..1954 में 8 लाख 15 हज़ार क्यूसेक तक बाढ़ का पानी आया था और अबकी बार 1968 में जो बाढ़ आयी उसमें 9 लाख 13 हज़ार क्यूसेक पानी आ गया। आप स्वयं अंदाज़ा कीजिये कि उस 8 लाख 15 हज़ार क्यूसेक पानी में जबकि तटबंध नहीं बना था पूरा दरभंगा और सहरसा जिला बर्बाद हुआ था। अब जबकि 9 लाख 13 हज़ार क्यूसेक पानी 10 मील के अन्दर आ गया है तो उसके परिणामस्वरुप वहां के बसने वालों की कैसी दुर्दशा हुई होगी? क्या गारंटी है कि वहां पर 10 लाख क्यूसेक पानी नहीं आ सकता है। क्या राव साहब ऐसी गारंटी दे सकते हैं?”
वास्तव में इस घटना से पहले कोसी का तटबन्ध पहली बार 1963 में ही, जिस साल उसका निर्माण कार्य पूरा हुआ था तभी, नेपाल में डलवा गाँव के पास टूट चुका था। उसके बाद कोसी ने डलवा से थोडा नीचे भारत के कुनौली गाँव पर 1967 में चोट करना शुरू किया। जब यहाँ भी बाँध टूटने का खतरा हुआ तब मामला फिर 12 जुलाई को लोकसभा में उठा कि यह हो क्या रहा है? जवाब में डॉ. राव ने सदन को बताया कि, “ नदी के सम्बन्ध में कोई यह नहीं कह सकता कि दरार पड़ेगी या नहीं। कोसी के बारे में यह बात खासकर कही जा सकती है क्योंकि कोसी हमेशा पश्चिम की ओर खिसकती रही है। कोसी की इस विशिष्टिता के कारण ही हमें कोसी योजना को हाथ में लेना पड़ा है जिसकी वजह से नदी पर लगाम कसी जा सकी है और यह पिछले दस वर्षों से एक जगह बनी हुई है वरना यह दरभंगा जिले में झंझारपुर तक पहुँच गयी होती।”
यह बयान उन्ही राव साहब का है जिनकी सिफारिश पर 1955 में कोसी योजना पर काम शुरू हुआ था जब वह चीन से ह्वांग हो नदी के तटबंधों का अध्ययन कर के सितम्बर 1954 में लौटे थे और कहा था कि ह्वांगहो नदी बड़ी खूबी से अपनी गाद सफलता पूर्वक समुद्र में पहुंचा देती है और कोई वजह नहीं है कि कोसी ऐसा नहीं कर सकती है।
बाँध टूटेगा भी, अगर यह बात 1954 में कही गयी होती तो कोसी पर तटबन्ध बनाने की योजना वहीं छोड़ दी गयी होती। लेकिन उन्हें अच्छी तरह पता था कि रोटी में घी किस तरफ चुपड़ा हुआ है और उन्हें क्या रिपोर्ट देनी है।