MMITGM : (39)
हे प्रचंड-आवेगों की विभिन्नता के शक्ति-तरंगों को अपने हृदयस्थ करने वाले हिमालयन-शिवलिंगाकार भोलेनाथ! आपने आकाश-मार्ग, पाताल-मार्ग और पृथ्वी के सतही-मार्ग से रमण करने वाले विभिन्नता के आवेगों उनके गुणों के जल-तरंगों को अवशोषित कर, उसे अन्त:स्थल में रोक कर तदुपरांत निस्तारण करने वाले होते अपने बर्फ रूपी जल के विशाल भंडार का भंडारण कर हिमवान क्यों कहलाते हैं? इतना बड़ा बोझ, ओवर-हेड-टैंक आप क्यों अपने माथे पर रखते हैं? क्या यह इमरजेंसी के लिये रखते हैं कि जीव-जगत को कहीं कम न पड़ जाये? विशिष्ट जल-गुणों के इन विशाल-भंडारण का उद्देश्य क्या है? क्या जल ही जीव के जीवत्व का पंच-तत्व है, इसलिए क्या यही मानव का तेज-संस्कृति और संस्कार है? इसलिए क्या, जीवन्त-उद्देश्य मुक्ति के ज्ञान के ध्यान की जड़ यही है, इसलिये सचमुच में आप हिमालयन-शिवलिंग रूप साक्षात विश्वनाथ हैं भोलेनाथ! आपको कोटिशः प्रणाम.
MMITGM : (40)
पर्वतीय-शिवलिंगों से प्रस्फुटित, संचालित, नियंत्रित त्रिपथ गामिनी जलधारायें और जलवायु ही ब्रह्म का ब्रह्माश्त्र है.
गगनचुंबी स्थैतिक ऊर्जा की स्थिति से रूपांतरित समुद्री खारे जल को विभिन्न गुणों व शक्तियों से आवेष्ठित कर जीव जगत के प्राणाधार, विश्व भर में पर्वतीय-शिवलिंग धारण करने वाले, हे भोलेनाथ! विश्व की समस्त नदियाँ जब आप के पर्वतीय-लिंगों से ही निकलती हैं तब आप क्यों गंगाधर हैं? क्या इसलिये कि गंगा के रूप में विश्व की सर्वश्रेष्ठ जीवन रूपी अमृतधारा आप ही प्रवाहित करते हैं? हे अनंत जल-स्त्रोतों का निर्माण करने वाले, विश्व के किसी दो नदीजल को किसी भी दृष्टिकोण से, न रंग से, न रासायनिक-गुणों से, न उद्गमस्थल की ऊँचाई से, न प्रवाह की मात्रा से, न दिशा से, न नदी की लम्बाई-चौड़ाई एवं अन्य चारित्रिक गुणों से एक जैसा क्यों नहीं है? क्या भोलेनाथ! इसी कारणवश मानव सहित किसी भी एक प्रजाति के दो जीव एक जैसे नहीं होते हैं, न शरीर से, न स्वभावों से और न व्यवहारों से एक होते हैं? अत: हे भोलेनाथ! लगता है कि किसी के या किसी समुदाय के या किसी प्रान्त या देश के सभ्यता-संस्कृति, शांति और अशान्ति आदि समस्य गुणों-चरित्रों को बदलने का आप का ब्रह्माश्त्र जल ही है? अतः हे गंगाधर! आप जलेश्वर रूप परमेश्वर व प्राणेश्वर हैं. आपको कोटिशः प्रणाम.