केन्द्रस्थ : Catching hold of Nucleus ; MMITGM : (134)
हे भोलेनाथ! गंगाजल का बैक्टीरियोफेज क्या गोमुख का जैनेटिक कैरक्टर है? और क्या यह कोरोना वायरस जैसे अनगिनत वायरस रोगों का निदान है? अभी कोरोना वायरस के देश में तीव्रता से फैलाव को गंगाजल के द्वारा रोका जा सकता है और बैक्टीरियोफेज का उपयोग गंगा पर बने डैम्स और बैराजों के रहते कैसे किया जा सकता है? हे दयासागर, इन प्रश्नों का आप जवाब देने की कृपा कीजिए :
भगवान भोलेनाथ कहते हैं, सुनों :
गंगा की विभिन्न शक्तियों में एक उसके जल में रोग-संक्रमण-वायरस को मूलता से नष्ट करने की विशेष क्षमता का होना है. यह क्षमता कोरोना वायरस के अतिरिक्त अन्य वायरसों को भी मारने की हो सकती है. इसलिये गंगा की इस शक्ति का उदगम कैसे है और इसे कैसे संरक्षित किया जाना चाहिए आज यह जानने की आवश्यकता देशवासियों को है.
इसे समझने के लिये हिमालय की स्थिति और कुछ नदियों के उदगम स्थान के मात्र जल-रंग के विषय में सोचने की आवश्यकता है कि ये अलग-अलग क्यों हैं? हिमालय पर विभिन्न नदियों के उदगम स्थल विभिन्न ऊँचाइयों पर हैं. इन स्थानों के चट्टानों की संरचनायें तथा ढ़ाल अलग-अलग हैं और हर एक नदी के जल-रंग में भिन्नता है. यह गुण परिलक्षित करता कि नदियों के भूजलीय स्त्रोत अलग-अलग गहराइयों में अलग अलग हैं. यह और भी परिभाषित करता है कि नदियों के उदगम स्थल की ऊँचाई और भूतलीय जल में सम्बन्ध है. यही कारण है कि गंगा की उदगम-स्थली "गोमुख" से धवल-श्वेत-गंगाजल का रंग है, यमुना जी की उदगम स्थली पर जल का रंग नीला है और सोन-नदी की उदगम स्थली पर जल भूरे रंग का है. ये जल रंग इनके जन्मजात, जेनेटिक कैरेक्टर्स हैं. यह अन्य कितने ही गुणों की व्याख्या उसी तरह करते हैं जिस तरह नवजात शिशु के शरीर का जन्मजात रंग उसके विशेष क्रोमोजोम्स को एवं अन्य गुणों का निर्धारण करता है. अतः नदी उदगम का जल-रंग नदी हृदय के विशिष्ट गुण की व्याख्या करता है.
हिमालय की इन तीन नदी उदगम स्थलों के जलरंग विभिन्न उँचाइयों के अगल-बगल की नदियों के हैं. इनके जल के अन्य चारित्रिक गुणों के अंतर में गंगाजल में बैक्टीरियोफेज का होना गंगाजल का महानतम दुर्लभ चरित्र है. यह चरित्र स्थान विशेष पर पर्वतीय ऊँचाई से आधारित भूतलीय जल गुण है. अतः गंगाजल का बैक्टीरियोफेज गंगा के उदगम स्थल का चारित्रिक गुण है. इसका गंगा शरीर में संतुलित प्रवाह गंगा की विशेष औषधीय शक्ति है और इससे वायु, जल और मृदा के द्वारा कोरोना वायरस का फैलाव नियंत्रित होगा. वातावरण रोग मुक्त होगा. इस जल को डैम्स के जलाशयों से और बैराज से बैक्टीरियोफेज का क्या संबंध है और कैसे है, इन्हें समझने की आवश्यकता है. और यह भी आवश्यक है कि इन्हें कैसे व्यवस्थित कर देश को कोरोना वायरस जैसी समस्त आपदाओं से संरक्षित रखा जा सके?
इसके लिये अभी आवश्यक है कि गंगा पर जितने भी डैम्स और बैराज हैं, उनके गेट को उतना ही उठाया जाए अर्थात् ओपन किया जाये जितने से गंगा की मुख्यधारा में अभी के गोमुख प्रवाह के बराबर जल की बढ़ोत्तरी हो जाये. यही है उदगम स्थान के के बराबर नदी में न्यूनतम जल के प्रवाह का बना रहना. इस सिद्धांत के तहत अभी गंगा के बढ़े डिसचार्ज में बैक्टीरियोफेज का घनत्व बढ़ेगा, जल वेग बढेगा. इनसे वातावरण ज्यादा स्वस्थ्य होगा और आमूलरूप से कोरोना वायरस का फैलाव रूकेगा. इस तरह वर्तमान के समस्त डैम्स और बैराज को यथास्थिति में रखते हुए इसकी कार्य पद्धति को बदलकर कोरोना वायरस को वर्तमान में परास्त किया जा सकता है. इस समस्या के उपरांत बैक्टीरियोफेज को संरक्षित करने के लिये स्थायी तकनीक से ऑपरेशनल सिस्टम को बदलते हुए गंगाजल, मात्र पेय-जल है या मेडिसिन है, इसे सत्यापित करना होगा.