MMITGM : (18)
भगवान शिव से - हे भालेनाथ! आत्मा न तो किसी को मारती है और न ही किसी के द्वारा मारी जाती है.. (भगवान श्रीकृष्णा कहते हैं गीता-2.19). ऐसी स्थिति में संसार का समस्त खेल कौन करता है? और वह क्यों करता है? कौन किसको मारता है? और काट-छाँट होने वाली देह क्या है? क्या यह आणविक युद्ध, कैमिकल-रियैक्शन जैसा, आउटर-मोस्ट से आउटर-मोस्ट आर्विटल पर कम्पायमान एलेक्ट्रोन के बीच की लडाई है? अर्थात यह क्या इन्द्रियों के संवेदनाओं की लडाई है? क्या यह मात्र एलेक्ट्रोन का ट्रान्सफर है और नये चीजों का प्रतिक्रिया स्वरूप, लड़ाई के उपरांत बनने का है? यह प्रत्यक्ष भाषित होता है कि शरीर के आउटरमोस्ट आर्विटल पर अवस्थित इलेक्ट्रान रूप इन्द्रियों की संवेदनाओं के बीच ही लडाई होती है, जिससे इन्द्रियों की काट-छाँट होती है और संसार मात्र इन्द्रियों के लडाई की ही युद्धस्थली है? अतः हे भोलेनाथ! एटम के केन्द्र में अवस्थित प्रोटोन, जैसे, कैमिकल-रियैक्शन में भाग नहीं लेता, वैसे ही आत्मा किसी क्रिया में भाग नहीं लेती अर्थात यह न तो किसी को मारती है और न किसी के द्वारा मारी जाती है.
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भगवान शिव से - हे भोलेनाथ! गीता (2.20) में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है "आत्मा के लिए किसी भी काल में न तो जन्म है न मृत्यु, वह न तो कभी जन्मा है, न जन्म लेता है और न जन्म लेगा. वह अजन्मा, नित्य, शाश्वत तथा पुरातन है. शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता. क्या यह इसलिए क्योंकि वह ब्रह्मांड का जो निर्माण किया उसके शरीर से ही निकला है, जब तक निर्माता है तब तक वह रहेगा? यह निर्माता कौन है? उसका स्वरूप क्या होना चाहिए? इसका अर्थ यह नहीं कि आत्मा उसके शरीर में, उसके शरीर का ही भाग है और ब्रह्माण्ड के समस्त पदार्थों के सूक्ष्मातिसूक्ष्म कणों में प्रोट्रान और इलेक्ट्रान की बराबर संख्या, दोनों को मिलाने पर न्यूट्रॉन और तीसरा कण न्यूट्रॉन है. अतः समस्त खेल का खिलाड़ी वह है जिसने न्यूट्रॉन जैसा शरीर धारण किया है. उसका हरेक आचरण बिरक्ति-भाव का हो, जो निरंतर ध्यानस्थ अपनें आप के भीतर रहता हो? वह, यह कौन है, भोलेनाथ? यह आप तो नही हैं, भोलेनाथ आप ही वह हैं. ब्रह्माण्ड आप का शरीर है, ठकपनी छोड़िये. चहुदिश, कण-कण में विराजमान आप को बार-बार अनन्त बार प्रणाम है.