भारत वासियों के लिए जीवनदायिनी और युगों युगों से अविरल बहती पतित पावनी गंगा को लेकर उत्तराखंड के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी की ओर से बहुत बड़ा शोध किया गया है। जिसके आधार पर स्पष्ट किया गया है कि यदि भविष्य में जलवायु परिवर्तन इसी प्रकार बना रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब धीरे धीरे गंगा भी प्राचीन नदी सरस्वती की भांति विलुप्त हो जाएगी। इसका प्रमुख कारण यह है कि गंगोत्री ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिंग के चलते तेजी से पिघलने लगा है।
गंगा जो हमारे भारत देश की पहचान व जीवनदायिनी है, यहां का प्रत्येक नागरिक अत्यंत शान के साथ कहता है कि हम उस देश के निवासी है जहां गंगा बहती है। वही गंगा जिसे कालांतर में राजा भागीरथ सैकड़ों वर्षो की तपस्या के बाद अपने पितरों की मुक्ति हेतु स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक पर लेकर आये थे। गंगा को हमारे देश का जल संपदा का प्रतीक माना जाता है। जो कि हमारी जीवनदायिनी भी है, आज उसी गंगा का जीवन भी खतरे में है।
बढ़ रही है गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की गति
गंगा नदी, जिसकी उत्पत्ति का स्त्रोत ही गंगोत्री ग्लेशियर है। वह बीते 87 वर्षों में जिस प्रकार 1700 मीटर तक खिसक चुका है, वह वाकई चिंताजनक है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी के साइंटिस्ट डॉ. राकेश भाम्बरी और उनकी टीम के द्वारा की गई स्टडी बताती है कि वर्ष 1935 से लेकर 2022 तक गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने वाला हिस्सा लगभग पौने दो किलोमीटर तक पिघल चुका है। डॉ. राकेश भाम्बरी ने जानकारी दी है कि गंगोत्री ग्लेशियर 1935-1996 तक जहां प्रति वर्ष 20 मीटर तक पिघलता था, उसकी रफ्तार अब बढ़कर 38 मीटर प्रतिवर्ष हो गई है।
भारी बारिश के चलते दर्जन भर हिमनदों का ही हो रहा है अध्ययन
गंगोत्री ग्लेशियर, उत्तराखंड हिमालय का सबसे बड़ा ग्लेशियर है, जिसकी लंबाई लगभग 30 किमी, चौड़ाई 0.5 से 2.5 किमी और लगभग 143 वर्ग किमी है। इस ग्लेशियर से पिघला हुआ पानी, जो 3,950 मीटर की ऊंचाई पर गौमुख के मुहाने से निकलता है, भागीरथी नदी का प्रमुख स्रोत है, जो बाद में देवप्रयाग में अलकनंदा नदी से मिलकर गंगा का निर्माण करती है। भारतीय हिमालय में 9,575 हिमनद हैं, जिनमें से 968 तो उत्तराखंड में ही स्थित हैं। वर्तमान में वैज्ञानिक और शोधकर्ता गंगोत्री, चोराबाड़ी, दूनागिरी, डोकरियानी और पिंडारी सहित राज्य में दो दर्जन से भी कम हिमनदों की निगरानी कर पा रहे हैं, जिसके कारण भारी बारिश है।
जलवायु परिवर्तन और ब्लैक कार्बन है ग्लेशियर पिघलाव का कारण
वैज्ञानिकों द्वारा किए गए शोध के आधार पर कहा जा सकता है कि दो तरह के प्रदूषण के कारण इस समय हिमालय प्रभावित है। जिनमें बायोमास प्रदूषण, यानि कार्बन डाईआक्साइड और एलीमेंट प्रदूषण यानि तत्व आधारित प्रदूषण प्रमुख हैं। ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले जलवायु परिवर्तन से इस प्रकार से प्रदूषणों को गति मिलती है और इन दोनों से ही ब्लैक कार्बन का निर्माण होता है, जो ग्लेशियर के जीवन के लिए खतरा बनते हैं। मुख्य रूप से हिमालय पर जमा हो रही ब्लैक कार्बन और लगातार हो रही तापमान वृद्धि वर्तमान में ग्लेशियर्स के तेजी से पिघलने का कारण बन रहे हैं।
तीन वर्ष पूर्व
साइंस एडवासेंज में प्रकाशित एक स्टडी में भी कहा गया था कि भारत समेत पूरे हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते तापमान के कारण हर साल करीब औसतन 0.25 मीटर ग्लेशियर पिघल रहे हैं। जबकि, वर्ष 2000 के बाद से हर साल आधा मीटर ग्लेशियर पिघल रहे हैं। वर्ष 1975 से 2000 तक जितनी बर्फ पिघली थी, उसकी दोगुनी बर्फ वर्ष 2000 से अब तक पिघल चुकी है। इस अध्ययन में, भारत, चीन, नेपाल और भूटान के हिमालय क्षेत्र के 40 वर्षों के उपग्रह चित्रों का विश्लेषण किया गया था। शोधकर्ताओं ने इसके लिए करीब 650 ग्लेशियरों के उपग्रह चित्रों की समीक्षा की। ये ग्लेशियर हिमालय के क्षेत्र में पश्चिम से पूर्व की ओर 2000 किलोमीटर के दायरे में फैले हुए हैं।
खतरे में हैं हिमालय के ग्लेशियर - डॉ राकेश भाम्बरी
डॉ राकेश का कहना है कि ग्लेशियर पिघलने की वजह हिमपात में कमी और अत्याधिक बारिश होने के साथ ही अपर हिमालय क्षेत्रों का तापमान बढ़ना भी है। और कहीं न कहीं हम सभी इन सभी कारणों के लिए दोषी हैं क्योंकि जैसे जैसे कार्बन फुटप्रिन्ट बढ़त है वैसे वैसे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है, जिससे जलवायु परिवर्तन देखने को मिलता है। मौसम के पैटर्न में जिस प्रकार बदलाव आ रहा है, उससे महसूस किया जा सकता है कि हिमालय के ग्लेशियर खतरे में हैं और इसका सर्वाधिक प्रभाव नदियों पर ही बढ़ेगा।
वैसे शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर मौजूदा दर से भी ग्लेशियर पिघलता रहा तो करीब 1,500 वर्षों में गंगोत्री ग्लेशियर पूरी तरह पिघल सकता है। हालांकि उन्होंने कहा है कि पर्याप्त डेटा के अभाव में यह कहना उचित नहीं है लेकिन भविष्य में जब हमारे पास और अधिक डेटा होगा तो हम बेहतर अनुमान लगा सकेंगे। लेकिन तब तक हमें इस नुकसान की भरपाई करने के उपायों की ओर ध्यान देना चाहिए।