बाढ़ आती रहेगी, सूखा पड़ता रहेगा और हाहाकार होता रहेगा।
कुछ दिन पहले बाढ के मसले पर मैंने पंडित जवाहरलाल नेहरू के विचार लिखे थे। अब इस समस्या पर उसी वर्ष, 1961 में, कर्पूरी ठाकुर ने इस मसले पर क्या कहा था, सुनिये।
राज्य की बाढ नियंत्रण और सिंचाई नीति की चर्चा करते हुए उन्होनें दरभंगा जिले के समस्तीपुर सब-डिवीजन में गंगा के किनारे बसे हुए गाँवों में बाढ़ की भयंकर स्थिति की चर्चा करते हुए कहा कि, ‘हथिया नक्षत्र की अभूतपूर्व बारिश के कारण अनुसार गाँव के गाँव इस बाढ़ में बह गये, लोग बह गये, सैकड़ों लोगों की जान चली गयी, हजारों माल मवेशी बह गये, बड़े पैमाने पर घर-बार गिर गये, फसलों की भयंकर बरबादी हुई और इतने बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ कि लोगों की रीढ़ टूट गयी।
मुंगेर में हुए नुकसान के बारे में हम लोगों ने सुना है लेकिन दरभंगा के समस्तीपुर सब-डिवीजन में भी 25 इंच वर्षा हुई। इस सब-डिवीजन में शायद ही कोई ऐसा गाँव बचा हुआ हो जहाँ नदियों की बाढ़ से 25 से 75 फीसदी मकान गिर न गये हों। आर्थिक दृष्टि से लोग बहुत ही कमजोर हो चुके हैं। यहाँ धान की फसल निचले इलाकों में होती है। पहले वहाँ वर्षा न होने से रोपनी 20 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हो पायी और अब जहाँ रोपनी हो चुकी थी वहाँ पानी लग गया और 90 प्रतिशत के आसपास धान समाप्त हो गया। इसके अलावा दो नगदी फसलें हैं, एक तंबाकू और दूसरी मिर्च और उसका भी कोई नाम लेने वाला नहीं बचा है।
राज्य की बाढ़ और सिंचाई नीति की चर्चा कहते हुए उनका कहना था कि 1950 से लेकर 1960 तक लगभग ढाई सौ करोड़ रुपये का नुकसान हमारे प्रान्त को सूखे और बाढ़ से हुआ है। पहली और दूसरी पंचवर्षीय योजना में हमने यहाँ ढाई अरब रुपये अपने विकास के कार्यों में लगाये हैं जिनसे ढाई अरब रुपये का नुकसान भी हो चुका है। कुल मिला करके इन योजनाओं से हमको कोई फायदा नहीं हुआ जिसे हमने नहर, तटबंध, सड़क, सिंचाई और शिक्षा पर खर्च किया है। हम तुलना करते हैं तो पता चलता है कि जितना हमें विकास पर खर्च किया उतना ही गवाँ भी दिया।
‘हमारे सब-डिवीजन ताजपुर में, वारिसनगर में, सिंघिया में और मोहिउद्दीन नगर में रिलीफ का कोई भी काम नहीं हुआ है। मुंगेर, भागलपुर, सहरसा, पूर्णिया और गया के जिन हिस्सों में बाढ़ का प्रकोप रहा है वहाँ सरकार जो रिलीफ की व्यवस्था कर पाई है वह भी नहीं के बराबर है और नाकाफी है।
उन्होंने तीन सुझाव दिये। जहाँ लोगों को कोई रोजी नहीं है और जब कोई फसल भी नहीं होने वाली है वैसे लोगों को तत्काल सहायता दी जाये। उनके खाने-पीने और घर बनवाने का प्रबन्ध करना, उनके बच्चों को पढ़ने-लिखने की सहायता दी जानी चाहिये। जब तक वहाँ के लोगों को काम नहीं मिलता, उनकी क्रय-शक्ति नहीं बढ़ती तब तक उनको सब प्रकार से मुफ्त सहायता दी जाये। सरकार सर्वेक्षण करने और लिस्ट बनाने के नाम पर मदद पहुँचाने में महीनों लगा देती है। जहाँ से लिस्ट नहीं आती है वहाँ सरकार वादा करती है और मुझे उस पर कौड़ी भर भी विश्वास नहीं होता। मैं सरकार से कहना चाहता हूँ कि जिन लोगों का मकान गिर गया उनका घर बनाने में मदद करें। जो गाँव बिल्कुल चौपट हो गये हैं उनको बसने का प्लान बनाया जाना चाहिये। हमारे प्रान्त में जितनी बड़ी-बड़ी नदियाँ हैं उनके लिये आप रिवर कंट्रोल अथॉरिटी बनायें और जितनी छोटी-बड़ी नदियाँ हैं उन सभी नदियों के अगल-बगल अफॉरेस्टेशन, बंडिंग, रिवर ट्रेनिंग, डी-सिल्टिंग आदि का काम करायें।
‘अगर आप बिहार को बाढ़ की विभीषिका से बिहार को हमेशा के लिये मुक्त रखना चाहते हैं तो ऐसा तभी हो सकता है जब अस्थायी कंट्रोल के साथ-साथ स्थायी प्रबन्ध भी करें। जब तक बाढ़ और सूखे से अपने गाँव को बचाने का प्रयत्न नहीं करेंगे तब तक आप जनता की सुरक्षा नहीं कर सकेंगे। बाढ़ आती रहेगी, सूखा पड़ता रहेगा और हाहाकार होता रहेगा।’