बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी एवं भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रान्तिकारी भाई परमानंद आर्यसमाज और वैदिक धर्म के अनन्य प्रचारक थे | इतिहास, साहित्य और शिक्षाविद् में उनकी असीम रूचि थी | उनका जन्म ४ नवम्बर १८७६ को झेलम जिला के करियाला ग्राम में हुआ | भाई परमानन्द ने स्नातकोत्तर की शिक्षा पंजाब विश्वविद्यालय से पूरी की उसके बाद वह लाहौर के दयानन्द एंग्लो महाविद्यालय में शिक्षक के तौर पर नियुक्त हुए | देशभक्ति और राजनीतिक दृढ़ता उनमे कूट-कूट के भरी थी इसलिए विश्वविद्यालय के युवा भी उनसे प्रेरित होते गए | क्रांति के रस्ते पर आगे बढ़ते हुए ग़दर पार्टी के संस्थापकों में वो भी शामिल रहें |
सन् १९१४ में एक व्याख्यान यात्रा के लिये वे लाला हरदयाल के साथ पोर्टलैण्ड गये तथा गदर पार्टी के लिये 'तवारिखे-हिन्द' (भारत का इतिहास) नामक ग्रंथ की जो रचना उन्होंने वहां की वो युवाओ को सशक्त क्रांति के लिए प्रेरित करती गयी | ग़दर पार्टी की जो संस्थापना की गयी थी उससे और भी लोग जुड़ते चले गए और जब परमानन्द जी भारत आये इसी क्रांति को आगे बढ़ाने का मकसद लेकर तब उनके साथ और भी क्रन्तिकारी आये |
उनके विरुद्ध अमरीका तथा इंग्लैण्ड में अंग्रेजी सत्ता के विरुद्ध षड्यन्त्र करने के जुर्म में २५ फ़रवरी १९१५ में परमानन्द जी व् अन्य क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गयी पर सज़ा की खबर से पूरे देश के लोग उद्विग्न हो गए इसलिए उनकी फांसी की सजा को रद्द करके आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गयी |
हर कठिन राह को आसान करने का दृढ़ निश्चय रखकर सबको प्रेरित करने वाले भाई परमानन्द जो हर लड़ाई पूरे साहस से लड़ते आए वो आखिर भारत पाकिस्तान के विभाजन की खबर नहीं स्वीकार कर पायें | इस खबर से उन्हें बहुत बड़ा झटका लगा और ८ दिसम्बर १९४७ को उन्होंने इस संसार से विदा ले ली | उनकी स्मृति के तौर पर दिल्ली में एक व्यापार अध्ययन संस्थान का नामकरण उनके नाम पर किया गया है |
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