वाटरकीपर एलायंस 1999 में निर्मित एक पर्यावरणीय संगठन है, जिसका मुख्यालय न्यू यॉर्क (यूएसए) में स्थापित है. वर्तमान में यह 300 से अधिक जल संरक्षण संगठनों एवं उनसे सम्बन्धित एजंसियों को एकजुट करता है, जो वैश्विक जल संकट के लिए महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं एवं छह महाद्वीपों की 2.5 मिलियन वर्ग मील की नदियों, झीलों व तटीय प्रदेशों की गश्त तथा सुरक्षा के लिए कार्यरत हैं.
वाटरकीपर आन्दोलन, अलास्का से हिमालय तक, ऑस्ट्रेलिया की ग्रेट झीलों तक, पीने योग्य, मछली पकड़ने योग्य और तैरने योग्य जल के मौलिक मानव अधिकार की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और स्थानीय जलमार्गों पर किये गये प्रमुख शोध के माध्यम से अपने समुदायों के अधिकारों के प्रति अविश्वसनीय वचनबद्धता के साथ कार्यरत है.
श्री रमन कांत को वर्ष 2015 से नदी जल की रक्षा करने के लिए पूर्वी काली जल संरक्षक के रूप में नियुक्त किया गया है. वह विभिन्न स्थानों पर नदी जल का अध्ययन और विश्लेषण करने के लिए एक दशक से भी अधिक समय से ज़मीनी स्तर पर सक्रिय रहे हैं, वें प्रदूषण के स्तर और स्रोतों पर नजर बनाए रखते हैं, उद्योगों और संबंधित सरकारी विभागों तक पहुंच रखकर तथा अन्य प्रयासों के जरिये नदी के किनारे बसने वाले समुदायों के साथ जागरूकता अभियान आयोजित करते रहते हैं. वह समुदायों की ओर से एक प्रवक्ता के रूप में भी कार्य कर रहे हैं और वर्तमान में वें पहले व्यक्ति हैं, जिन्हें स्थानीय निवासी नदी सम्बन्धित किसी भी मुद्दे के लिए सर्वप्रथम संपर्क करते है. रमन जी ने वर्ष 2017 में उटा, यू.एस.ए. में आयोजित वार्षिक डब्ल्यूकेए सम्मेलन में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करायी.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया, 1969 में स्थापित एक विज्ञान आधारित संगठन है जो लोगों के बीच प्रजातियों व उनके प्राकृतिक आवासों, जलवायु परिवर्तन, जल एवं पर्यावरण शिक्षा संरक्षण आदि मुद्दों को संबोधित करता है. इसके परिप्रेक्ष्य ने वर्षों से देश के विभिन्न संरक्षण मुद्दों की एक और समग्र समझ को प्रतिबिंबित करने के लिए व्यापक रूप से विस्तार किया है और यह विभिन्न हितधारकों, जैसे ; सरकारों, गैर सरकारी संगठनों, स्कूलों व कॉलेजों, कॉर्पोरेट वर्ग और अन्य व्यक्तियों के साथ कार्य करके पर्यावरणीय संरक्षण को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित करने का उत्तरदायित्व पूरा करता है.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के समर्थन के साथ नीर फाउंडेशन ने वर्ष 2015 में नदी की समग्र लंबाई का एक शोध कार्यक्रम शुरू किया. तटीय क्षेत्रों से जुड़े सभी आठ जिलों से नदी के सतही जल के नमूने एवं नदी के पास से भूमिगत जल के सैंपल विभिन्न स्थानों से एकत्रित किये गए. जिन्हें सरकार द्वारा प्रमाणित प्रयोगशाला में परीक्षण के लिए भेजा गया. डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया को सम्पूर्ण विश्लेषण डेटा रिपोर्ट किया गया, जो आगे विस्तृत अध्ययन के लिए नीर फाउंडेशन में उपलब्ध है.
पूर्वी काली के जल संरक्षक (श्री रमन कांत) द्वारा चल रहे
निरंतर प्रयासों के माध्यम से, भारतीय सरकार के अंतर्गत जल संसाधन मंत्रालय द्वारा पवित्र
गंगा नदी को पुनर्जीवन योजना में सफलतापूर्वक शामिल किया गया है. मंत्रालय एक ऐसी
योजना का निर्माण करेगा जो नदियों की सफाई, किनारों पर वृक्षारोपण बढ़ाने, गांवों को वैकल्पिक जल
स्रोत प्रदान करने और जैविक खेती को बढ़ावा देने पर केंद्रित होगा. जल संरक्षक
द्वारा नदी जल की वर्तमान स्थिति का प्रदर्शन एवं मंत्रालय का ध्यान इस ओर
केन्द्रित किया गया.
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया के साथ साझेदारी परियोजना में, पूर्वी काली वाटरकीपर और
मूल संगठन नीर फाउंडेशन ने पूरे विस्तार के साथ आठ अलग-अलग स्थानों पर जल निकायों
के भूजल और सतही जल परीक्षण को सफलतापूर्वक संचालित किया. सैंपल का प्रयोग एक
प्रयोगशाला में किया गया था, जिसके द्वारा जल में भारी धातुओं और प्रतिबंधित पीओपी की
उपस्थिति की पुष्टि की गयी थी.
अनुलग्नक - जीआईएस विवरण (वर्ड फाइल से सम्पूर्ण डेटा को
यहां रखा जाना चाहिए)
पूर्वी काली नदी के किनारे रहने वाले कुछ गांवों में एक
विस्तृत अध्ययन किया गया. निम्न विश्लेषण रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए घर घर जाकर
प्रश्नावली और चर्चा की प्रक्रिया का अनुपालन किया गया था:
अनुलग्नक – डाबल फैक्टशीट, मोरकुका फैक्टशीट
इन सर्वेक्षण गांवों के पेयजल स्रोत का भी कार्यक्रम के तहत परीक्षण किया गया था,जो एक सरकारी प्रमाणित प्रयोगशाला में संचालित किया गया. इससे निम्नलिखित परिणाम प्राप्त किये गये:
जल सैंपल परिणाम
जल विश्लेष्ण
मानक अध्ययन
वाटरकीपर एलायंस
1999 में न्यूयॉर्क, युएसए में स्थापित एक पर्यावरणीय संस्था है.
पानी की शुद्धता या प्रदूषण, इसका उपयोग सामान्य रूप से इसकी भौतिक प्रकृति पर निर्भर करता है. यदि मिनरल वाटर में रंग या असहज गंध का मिश्रण हो, तब उसे भी प्रदूषित माना जाएगा, भले ही वह हानिकारक नहीं हो. वहीं इसके विपरीत प्रदूषित पानी को भी साफ-सुथरा माना जाएगा, यदि इसमें कोई रंग या गंध नहीं पायी जाये. हैंड पंप के पानी से लिए गये नमूनों के भौतिक परीक्षणों के परिणाम निम्नानुसार हैं –
रंग - साफ पीने का पानी रंगहीन होता है. अगर उसमें किसी
प्रकार की अस्पष्टता है, तो यह पीने के लिए उपयुक्त
नहीं है. पानी में किसी भी रंग की उपस्थिति से पता चलता है कि इसमें कुछ घुला हुआ
है. प्रयोगशाला में, रंग को कैलोरीमीटर की मदद
से मापा जाता है. मेरठ और गाजियाबाद से एकत्र किए गए लगभग सभी जल सैंपल हल्के पीले
या अधिक पीले रंग के पाए गये. गैसूपुर से एकत्रित जल के नमूने में अधिकतम पीला रंग
दिखाई दिया. लगभग सभी नदी जल के नमूनों में पानी का रंग काला था.
गंध - पेयजल बिना किसी गंध के होना चाहिए. किसी भी तरह की
गंध इसमें किसी प्रकार के अवांछनीय तत्वों की उपस्थिति की ओर संकेत करती है.
सीवरेज,नालियों और तालाबों के
पास स्थित खुले कुएं और हैंड पंप के पानी में गंदे पानी की गंध होती है. अध्ययन के
क्षेत्र के मेरठ और गाजियाबाद क्षेत्रों के लगभग सभी जल के नमूनों में हल्की गंध
मौजूद थी एवं नदी के पानी के नमूनों में बहुत मलिन गंध थी.
स्वाद - स्वच्छ पेयजल स्वादहीन होना चाहिए. यदि जल में किसी
प्रकार के स्वाद की अनुभूति हो, तो यह एक संकेत है कि इसमें कुछ मिलावट है. मेरठ, गाजियाबाद और बुलंदहरहर
क्षेत्रों से एकत्रित पानी के नमूनों का स्वाद पीने के पानी से पूरी तरह से अलग
था.
रासायनिक परीक्षण - पानी में मौजूद पदार्थों पर जानकारी
प्राप्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के रासायनिक परीक्षण किए जाते हैं. भूजल के इन
परीक्षणों के आधार पर, काली नदी और आसपास के
क्षेत्रों के रासायनिक गुण निर्धारित किए गए थे जो निम्नांकित हैं -
पीएच - पीएच लवणता और अम्लता के परिणाम दर्शाता है. पीएच सामान्य जल का 7.0 है, जिसे मध्यस्थ माना जाता
है. पीएच 7.0 से ऊपर लवणता और उससे नीचे अम्लता दिखाता है. विभिन्न
क्षेत्रों से अध्ययन किये गये सभी पानी के नमूनों में P.H > 7.0 से 8.2 के बीच देखा गया.
क्लोराइड - सभी जल निकायों का जल क्लोराइड समाविष्ट करता
है. विभिन्न परतों के माध्यम से जल को पारित होने एवं शीर्ष पर जमा होने में में
वर्षों लगते हैं. इस प्रक्रिया के दौरान विभिन्न परतों में मौजूद क्लोराइड पानी
में घुल जाता है और शीर्ष परत पर जमा हो जाता है. क्लोराइड सीवरेज, मनुष्यों और पशुओं के
यूरिन में भारी रूप से मौजूद होता है, जो पानी में क्लोराइड के बढ़ते स्तर के लिए जिम्मेदार कारक
हैं. बीआईएस (1991) के तयमानकों के अनुसार
पानी में क्लोराइड की उपस्थिति के लिए मानक सीमा 250 मिलीग्राम प्रति लीटर और संयुक्त सीमा 1000 मिलीग्राम प्रति लीटर
है. पानी में क्लोराइड के अध्ययन स्तर के लगभग सभी क्षेत्रों में सारे नमूनों में
स्वीकार्य सीमा के भीतर पाया गया. यह
क्लोराइड मानक गैसोपुर, अलीपुर और चौली में 507, 560 और 255 मिलीग्राम प्रति लीटर
पाया गया. क्लोराइड की मात्रा नदी जल में 32 से 128 मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच पाई गयी एवं आनंद पेपर मिल
में क्लोराइड निर्वहन 117 मिलीग्राम प्रति लीटर
रहा. हृदय और गुर्दे के रोगियों के लिए क्लोराइड की अतिरिक्त हानिकारक हो सकती है.
स्वाद और पाचन से संबंधित विकार भी देखे जा सकते है.
कठोरता - जल की कठोरता कैल्शियम बाइकार्बोनेट, मैग्नीशियम बाइकार्बोनेट, कैल्शियम सल्फेट और मैग्नीशियम बाई-सल्फेट के कारण होती है. कैल्शियम क्लोराइड, मैग्नीशियम क्लोराइड, कैल्शियम नाइट्रेट और मैग्नीशियम नाइट्रेट जैसे रसायन भी पानी की कठोरता में वृद्धि करते हैं. इन तत्वों की इस मात्रा के आधार पर, पानी की कठोरता को अग्रलिखित तरीके से वर्गीकृत किया जा सकता है:
बीआईएस द्वारा निर्धारित (1991) अध्ययन के क्षेत्र से एकत्र
किए गए अधिकांश पानी के नमूनों में पानी की कठोरता 600 मिलीग्राम प्रति लीटर की
अधिकतम सीमा से कम पायी गयी. आध, अलीपुर, मटनौरा, नरसल घाट और आनंदपुर ग्राम में यही आकंडा, क्रमशः 710, 915, 700, 610 और 630 मिलीग्राम
प्रति लीटर पाया गया. सभी नमूनों में पानी की कठोरता तालिका 6 में नीचे दी गई है:
कठोर जल वाले कपड़े धोने के लिए अधिक वाशिंग साबुन की
आवश्यकता होती है; सब्जियां पकाए जाने में
अधिक समय लेती हैं; कैल्शियम धमनियों में जमा
होता है और सबसे महत्वपूर्ण यह गुर्दे, मूत्राशय और पेट जैसी कईं बीमारियों का एक मुख्य कारक है.
कैल्शियम - बीआईएस (1991) ने पेयजल में कैल्शियम के लिए 75 मिलीग्राम प्रति लीटर और 200 मिलीग्राम प्रति लीटर पर संयुक्त सीमा निर्धारित की है. अध्ययन के क्षेत्र से सैंपल में से एक, मसलन जयभीमनगर में कैल्शियम की मात्रा 320 मिलीग्राम प्रति लीटर पायी गयी, जो बीआईएस (1991) की संयुक्त सीमा से काफी अधिक है. कैल्शियम मनुष्यों के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व है और स्वस्थ दांतों और हड्डियों के लिए हर रोज 0.7 से 0.2 मिलीग्राम की अल्प मात्रा में इसकी आवश्यकता होती है. गर्भवती महिलाओं और बढ़ते बच्चों को भी कैल्शियम की आवश्यकता होती है. पेयजल में कैल्शियम की कमी हड्डी सम्बन्धित विकारों और कमजोर दांतों का कारण हो सकती है.मानव शरीर के भीतर कैल्शियम का अधिकतम भाग फॉस्फोरस और कार्बनिक के रूप में तंत्रिका तंत्र में संकेंद्रित रहता है. कैल्शियम तंत्रिका तंत्र, मांसपेशियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और रक्त के थक्के के गठन को रोकता है. इसकी कमी से मानव शरीर पर काफी दुष्प्रभाव पड़ते हैं और इसकी अधिकता गुर्दों और मूत्राशय में पथरी, गठिया और जोड़ों से संबंधित रोगों में का कारण बन सकती है. ऐसे में, कैल्शियम के उच्च और निम्न स्तर, दोनों हानिकारक हैं.
फॉस्फेट - भूजल में फॉस्फेट का स्रोत प्राकृतिक और मानव
निर्मित दोनों हो सकते है. प्राकृतिक स्त्रोतों में भौगौलिक, पर्यावरणीय एवं सिंचाई
स्रोत हो सकते हैं. जबकि मानव निर्मित स्त्रोतों में घरेलू अपशिष्ट (ठोस और तरल), रासायनिक उर्वरक, प्राकृतिक उर्वरक, हड्डियों के उर्वरक और
कारखानों के अपशिष्ट निर्वहन हो सकते हैं. बीआईएस ने पीने के पानी में फॉस्फेट की
उपस्थिति के लिए कोई मानक सीमा निर्धारित नहीं की है, हालांकि, इसकी समाहितता वमन, दस्त इत्यादि का कारण हो
सकती है. अध्ययन स्तर के क्षेत्र से भूजल के नमूनों में पेयजल में फॉस्फेट बहुत
अधिक नहीं पाया गया, वहीं नदी जल में यह 8.2
मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया.
मैग्नीशियम - मानव शरीर के लिए प्रतिदिन 200 से 300
मिलीग्राम मैग्नीशियम की आवश्यकता होती है, और यह तत्व एंजाइमों की गतिविधि को बढ़ाता है. मैग्नीशियम
की कमी शरीर में दस्त, मूत्राशय विकार और
प्रोटीन की कमी का कारण बनती है. अध्ययन के क्षेत्र से चार जल सैंपल में अलीपुर, जयभीमनगर, महौली और आइमानपुर में
मैग्नीशियम की मात्रा 121, 112, 104 और 101 मिलीग्राम प्रति लीटर पायी गयी, जो बीआईएस संयुक्त सीमा
से अधिक है. अन्य सभी नमूनों में मैग्नीशियम की मात्रा अधिकतम सीमा से कम पायी गयी
और नदी के पानी में इसकी मात्रा 7 से 53 मिलीग्राम प्रति लीटर दर्ज की गयी.
सल्फेट - आईसीएआर (1975) और डब्ल्यूएचओ (1971) दोनों
ने ही पेयजल में सल्फेट की मानक उपस्थिति
200 मिलीग्राम प्रति लीटर और संयुक्त सीमा 400 मिलीग्राम प्रति लीटर निर्धारित की
है. B.I.S. (1991) ने मानक सीमा 150
मिलीग्राम प्रति लीटर और संयुक्त सीमा 400 मिलीग्राम प्रति लीटर निर्धारित की है
जबकि मैग्नीशियम की मात्रा 30 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए.
अध्ययन क्षेत्र में जयभीमनगर से पानी के नमूने में यह 720 मिलीग्राम प्रति लीटर
पाया गया, जो बीआईएस द्वारा
निर्धारित अधिकतम सीमा से काफी अधिक है. अलीपुर और दौलतगढ़ में सल्फेट स्तर क्रमशः
250 और 355 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया. मानकों के अनुसार इसकी सीमा 200
मिलीग्राम प्रति लीटर है. शेष नमूनों में सल्फेट की मात्रा केवल मानक सीमा से नीचे
पायी गयी. जब सल्फेट आयन अधिक सघनता से मैग्नीशियम और सोडियम आयनों के साथ मिलते
हैं तो वे उदर सम्बंधी रोगों का कारण बनते हैं. यदि पीने के पानी में सल्फेट की
मात्रा 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक है तो पानी का स्वाद खट्टा हो जाता है और
गैस्ट्रिक समस्याएं महसूस होती हैं.
नाइट्रेट - भूजल में नाइट्रेट का प्रमुख स्रोत नाइट्रोजन है, जो पर्यावरण, जैविक गतिविधि, भूगर्भीय निक्षेप, कारखानों से उत्पन्न
अपशिष्ट, सीवरेज, सेप्टिक टैंक, जानवरों के
यूरिन-उत्सर्जन, उर्वरकों और कृषि
प्रक्रियाओं में मौजूद होता हैं. बीआईएस (1991) के अनुसार, पेयजल में इसकी मानक सीमा 45 मिलीग्राम प्रति लीटर और संयुक्त सीमा 100
मिलीग्राम प्रति लीटर है. चिदौधा, खोखनी, अलीपुर, मातरौना, सिमराउली और आइमानपुर में नाइट्रेट की अध्ययन क्षेत्र में
मात्रा क्रमशः 198, 105, 261, 254 और 114 मिलीग्राम
प्रति लीटर पाया गया, जो कि बीआईएस द्वारा
निर्धारित संयुक्त सीमा से अधिक है.
जब नवजात शिशुओं को नाइट्रेट की उच्च सांद्रता वाला पानी दिया जाता है तो बच्चें सिनोप्सिस (मैथिमोग्लोबिमिया) नामक बीमारी से संक्रमित हो जातें है. इस बीमारी को 'ब्लू बेबी' भी कहा जाता है. मानव शरीर में, नाइट्रेट पहले नाइट्राइट में परिवर्तित होता है और फिर बैक्टीरिया द्वारा अमोनिया में परिवर्तित किया जाता है. जब नाइट्रेट अतिरिक्त मात्रा में उपलब्ध होता है तो अधिक नाइट्राईट बनाता है, जो हीमोग्लोबिन द्वारा अवशोषित होता है और मेटामोग्लोबिन में परिवर्तित होता है, जिसके बाद हीमोग्लोबिन रक्त में ऑक्सीजन वाहक के रूप में कार्य नहीं कर पाता है. यह बीमारी हमेशा नाइट्रेट की अधिकता से ही नहीं होती है क्योंकि मैकडैम द्वारा 1971 में कहा गया, कि यह किसी व्यक्ति की आनुवंशिकता और खाद्य आदतों पर निर्भर करता है.