बिहार की समय से पहले आई बाढ़-कुछ नहीं बदला है।
इस साल बिहार में इस बात की बड़ी चर्चा है कि वर्षा समय से पहले आ गयी और इसलिए उससे निपटने की सरकार की कोई तैयारी नहीं थी। इस समय मैं बिहार की 1956 की बाढ़ और सुखाड़ की अपनी रिपोर्ट को अन्तिम रूप दे रहा हूं। मेरे पास उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार 1956 में बिहार में बाढ़ का प्रकोप मई महीने के दूसरे सप्ताह में ही शुरू हो गया था और यह जुलाई महीने के अन्त तक प्राय: सभी जिलों में जारी रहा था। उसके बाद राज्यव्यापी सूखा पड़ा और अगस्त महीने के अन्तिम सप्ताह में बाढ़ फिर मुखर हुई। बाढ़ और सुखाड़ की पूरी विवेचना और बहस के विस्तार में न जाकर हम यहां सरकार द्वारा इन दोनों विपत्तियों पर सितंबर महीने में विधानसभा में दिये गये एक बयान पर पर चर्चा करते हैं।
विधायक गुप्त नाथ सिंह के सरकार के इस बयान पर अपनी टिप्पणी की थी।
उन्होंने इस बहस में कहा था कि, "बाढ़ को रोकने के लिए सरकार की तरफ से बहुत कुछ सूचनाएं हो रही हैं और नाना प्रकार की सहायता भी लोगों तक पहुंचाई जा रही है लेकिन न तो आपदाओं का आक्रमण रुका है और न उनकी स्थायी तौर पर रोकने का कोई प्रयास ही किया गया है। गंगा की बाढ़ से दियारे के इलाके को बहुत नुकसान पहुंचा है, बहुत से गांवों में लोग तकलीफ उठा रहे हैं, घर गिरे हैं, फसल बर्बाद हुई है। हमारे राज्य में कृषि विभाग है, पशुपालन विभाग है, उनके विशेषज्ञों द्वारा तरह तरह का प्रचार होता है लेकिन समस्या के आने पर सरकारी विशेषज्ञ कहां चले जाते हैं इसका पता ही नहीं लगता जिससे बाढ़ के समय पशुओं की रक्षा हो सके। बाढ़ के समय पशुओं को चारा देने का इंतजाम होना चाहिए और सूखे चारे का संचय करने का इंतजाम सरकार की तरफ से होना चाहिए लेकिन अभी तक सरकार का ध्यान इस तरफ नहीं गया है।"
सरकार के द्वारा दिए गए बयान पर उनकी टिप्पणी थी कि यह रिपोर्ट उस विद्यार्थी की तरह है जो परीक्षा के प्रश्न पत्र के जवाब में, अगर उसे विषय याद नहीं है तो, कुछ लाइन यहां की और कुछ लाइन वहां की लिख देता है जिसकी वजह से उसको अच्छा नंबर नहीं मिलता है। वही हालत इस रिपोर्ट की है। मेरी समझ में बड़े ऑफिसर एक ही जगह में बैठ कर बिना किसी एंक्वायरी किए हुए सब काम कर लेते हैं और उसकी रिपोर्ट लिखवा कर भेज देते हैं। श्रीमान! अभी तक हमारे इलाके में धान की रोपनी नहीं हो सकी है।"
उन्होंने यह भी कहा कि इस साल की धान की फसल बर्बाद हो चुकी है तो अगले साल किसानों के पास बीज भी नहीं होगा और इसकी व्यवस्था अभी से सोचनी चाहिए। सरकार बीज भेजती भी है तो अगस्त महीने में भेजती है जिससे जनता को लाभ नहीं पहुंचता है।