नदी में पानी नहीं आया मगर बाढ़ आई। 1964 की बात है। बिहार में उस साल गंगा के उत्तरी भाग में चंपारण से लेकर पूर्णिया तक का क्षेत्र बाढ़ से परेशान था। तत्कालीन सारण जिले में इस साल दाहा नदी पर बने एक स्लुइस गेट के कारण काफी तबाही हुई थी।
दाहा नदी, घाघरा नदी की एक सहायक धारा है जो बरसात के मौसम में स्लुइसगेट बनने के पहले ज्यादा पानी आने पर 900 फुट की चौड़ाई में बहती हुई घाघरा से मिलती थी। जब यह स्लुइस गेट बना तो उसमें 9 फुट 9 इंच चौड़े 30 फाटक लगाये गये थे। अगर यह सारे फाटक एक साथ उठा दिये जाएं तो भी पानी की निकासी के लिये लगभग 300 फुट ही रास्ता बचता था। इसलिये इतना तो पहले से ही तय था कि स्लुइस गेट बन जाने के बाद दाहा का पानी निकलने में दिक्कत पेश आयेगी क्योंकि पानी के निकासी का रास्ता एक तिहाई रह गया था। यह भी तय था कि नदी के पानी की निकासी न हो पाने के कारण वह अगल-बगल और पीछे दूर तक के इलाके को डुबायेगा। यह पानी न फैलने पाये इसलिए दाहा के दोनों किनारों पर तटबन्ध भी बना दिये गये।
इसमें स्लुइस गेट की इतनी ही उपयोगिता थी कि जब दाहा में पानी आये और घाघरा में जलस्तर नीचे हो तो स्लुइस गेट उठा कर दाहा का पानी सरलता से घाघरा में निकाल दिया जाये। घाघरा का जलस्तर ऊपर हो जाने पर चाहे जो भी कर लिया जाये, दाहा का पानी घाघरा में नहीं जायेगा, इस बात की पूरी सम्भावना थी। इस हालत में घाघरा का पानी उलटे दाहा में प्रवेश करने का प्रयास करेगा जिसे स्लुइस गेट बन्द करके रोका जा सकता था। दाहा नदी का पानी बाहर न फैलने पाये इसके लिये नदी के दोनों किनारों पर तटबन्ध बना ही दिये गये थे।
इस वर्ष इस क्षेत्र में 6 जुलाई से बारिश शुरू हुई और रुक-रुक कर 3 अगस्त तक होती रही। परिणामस्वरुप दाहा नदी में काफी पानी आ गया मगर दुर्भाग्यवश स्लुइस गेट के सारे फाटक बन्द थे और उन्हें उठाने का कोई प्रयास विभाग की तरफ से नहीं किया गया था। दाहा का पानी इस तरह वहीं अटक गया और स्लुइस गेट के पीछे के बाढ़ से तथाकथित सुरक्षित हिस्सों में बाढ़ की स्थिति पैदा हो गयी। इन फाटकों को 3 अगस्त तक भी नहीं उठाया गया था।
21 सितम्बर, 1964 के दिन स्थानीय विधायक रामानन्द यादव ने विधानसभा में सरकार से इस लापरवाही पर सफाई माँगी। जवाब में सरकार ने यह तो स्वीकार किया कि दाहा नदी में कैचमेंट में भारी वर्षा के कारण बाढ़ आयी, जिसकी वजह से सिसवन प्रखंड की भदई तथा धान की फसल बह गयी और कुछ कच्चे मकान बहे नहीं, गिर गये लेकिन सरकार इस बात से साफ मुकर गयी थी कि स्लुइस गेट उठाने की जिम्मेवारी उसकी है क्योंकि सरकार के अनुसार इस वर्ष दाहा में पानी ज्यादा पानी आया ही नहीं था।
सवाल इस बात का है कि जब पानी आया ही नहीं तब बाढ़ कैसे आ गयी? और बिना पानी के ही बाढ़ आ गयी तो भी स्लुइस गेट के फाटक कौन उठायेगा? विभाग की जिद थी कि वह फाटक नहीं उठायेगा भले ही उसके लिए जिले के कलक्टर और सिंचाई मंत्री का ही आदेश क्यों न लिखित दिया गया हो। रामानन्द यादव को यह सवाल एक बार फिर 1 अक्टूबर को उठाना पड़ा था जब हथिया की बारिश हो रही थी। विभाग ने नहीं सुना तो नहीं ही सुना।