कोसी परियोजना से सिंचाई की शुरुआत-
सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े।
9 जुलाई, 1964 के दिन कोसी की पूर्वी मुख्य नहर से पहली बार सिंचाई के लिये बीरपुर से पानी छोड़ा गया, जिसे सहरसा (वर्तमान सहरसा, सुपौल और मधेपुरा) और पूर्णिया (वर्तमान पूर्णिया, अररिया, कटिहार तथा किशनगंज) के भाग्योदय के रूप में प्रचारित किया गया था। पिछले साल 1963 में पश्चिमी कोसी तटबन्ध के साथ भी ऐसी ही घटना हो चुकी थी, जब बराज और तटबन्धों के निर्माण का काम पूरा हो जाने के बाद कोसी का पश्चिमी तटबन्ध नेपाल में डलवा गांव के पास 21 अगस्त के दिन टूट गया था।
दुर्भाग्यवश इस वर्ष जब पूर्वी मुख्य नहर में पानी छोड़ा गया तब उसी दिन मुरलीगंज शाखा नहर जीतापुर ग्राम पंचायत में कई स्थानों पर पानी के दबाव के कारण टूट गयी थी। इस घटना ने सिंचाई की उपलब्धता और नहर की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगा दिया और मामला बिहार विधानसभा तक पहुंचा।
इस घटना का जिक्र करते हुए बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने 3 अगस्त को विधानसभा में सरकार से पूछा कि क्या उसे नहर संचालन के पहले दिन ही इस नहर के कई स्थानों पर टूट जाने की खबर है और अगर सरकार यह जानती है तो भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न हो इसके लिये क्या-क्या कदम उठाये जायेंगे?
जवाब में सरकार की तरफ से सहदेव महतो ने नहर के टूटने की घटना से साफ इन्कार करते हुए कहा कि 10 जुलाई को इस नहर में पानी छोड़ा गया और पानी की मात्रा नहर की क्षमता से कम थी। 13 जुलाई तक कहीं भी कुछ नहीं हुआ। इस बीच बहुत जोरों की वर्षा हुई, जिससे नहर के किनारे के खेतों में पानी लग गया। उस पानी के जमाव को निकालने के लिये किसी ने 13 जुलाई की रात को नहर को काट दिया। जैसे ही इसकी सूचना मिली 14 जुलाई को नहर की मरम्मत कर दी गयी और बाहर से नहर में पानी आना रोक दिया गया। इस तरह से के कामों को रोकने के लिये चौकीदार नियुक्त कर दिये गये हैं।
बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल सरकार के इस उत्तर से सन्तुष्ट नहीं थे और वह इस बात पर अड़े रहे कि नहर काटी नहीं गयी है, वरन् टूटी है और नहर टूटने की एक और दूसरी घटना चार-पांच मील दूर परसा नामक एक स्थान पर भी हुई है। यह इलाका उनका अपना क्षेत्र है इसलिये वह सब जानते हैं। सहदेव महतो का कहना था कि विभाग के सुपरिटेंडिंग इंजीनियर ने खुद वहां जाकर जांच की है और पाया कि नहर काटी गयी है, टूटी नहीं।
अब सवाल उठा कि इस घटना के फलस्वरुप खेत का पानी अगर नहर में गया तो नहर काटी गयी है और नहर का पानी अगर खेत में आया तो नहर टूटी है। बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल का अभी भी कहना था कि इनकी (विभाग की) गलती से नहर का पानी खेत में पहुंच गया है। नहर खोलने वाले ने बहुत ज्यादा पानी खोल दिया, इसलिये यह नहर कई जगह टूट गयी है और लोगों को नुकसान पहुंचा है, नहर काटी नहीं गयी है। जिस दिन उद्घाटन हुआ, उस के तीसरे दिन 14 तारीख को यह काम हुआ है। सरकार इस बात की पूरी जांच करवा ले।
इस समय विधायक दारोगा प्रसाद राय ने सरकार से पूछा कि जब सुपरिटेंडिंग इंजीनियर ने जाकर देखा कि खेत का पानी नहर में जा रहा है तो वह कैसे इस नतीजे पर पहुंच गये कि किसी ने नहर को काट दिया है? तब अध्यक्ष का कहना था कि खेत में ज्यादा पानी होता है तो फसल नष्ट हो जाती है, इसलिये लोगों ने काटा होगा। दरोगा प्रसाद राय का मानना था कि जब खेत का पानी निकल जाता है तो लोगों की क्षति की बात कहां से आती है? पानी निकल जाने से तो लोगों को रिलीफ मिलती है फिर नहर टूटने से लोगों को नुकसान हुआ ऐसा क्यों कहा जा रहा है? जिस अफसर ने प्रतिवेदन दिया है वह गलत है। खेतों में अधिक पानी की वजह से नहर काट दी गयी तो लोगों को फायदा ही हुआ है। अतः नुकसान की बात कहां उठती है? इसमें विरोधाभास है।
बहरहाल, तय यह हुआ कि इस घटना की दोबारा जांच होगी और बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल भी उस जांच के दल में शामिल होंगे। यह तय होने के बाद बहस बन्द हो गयी। बिहार विधानसभा वादवृत्त, 3 अगस्त, 1964, पृ. 1-4.
इस जांच का क्या परिणाम निकला वह तो कह पाना मुश्किल है क्योंकि वह रिपोर्ट तो कहीं फाइलों में दबी होगी। पर इस तरह की बहस आजकल भी होती है क्या? जमीन से जुड़े नेताओं के बिना ऐसा विश्लेषण सम्भव नहीं है। बहरहाल यह घटना होने के बाद विवादों में इसी तरह घिरी रही।