1971 में काबर झील का छलकना और बूढ़ी गंडक के बांध का टूटना, बिहार के पूर्व मंत्री श्री राम जीवन सिंह से मेरी बातचीत के कुछ अंश।
उनका कहना था कि, "काबर झील की बनावट एक कटोरे की तरह से है। इसके चारों तरफ की जमीन ऊँची है। इसके एक तरफ नया नगर रेलवे स्टेशन, उधर पश्चिम की तरफ रोसड़ा है, हसनपुर-समस्तीपुर रेल लाइन है वगैरह वगैरह। इधर कहीं भी बारिश होती है तो वहाँ से सब का सब पानी यहीं काबर झील में आता है।"
"पहली पंचवर्षीय योजना में काबर झील का निर्माण हुआ था। तब उसकी पानी की निकासी का इन्तजाम कर दिया गया था लेकिन 1400 एकड़ से झील का पानी फिर भी नहीं निकल सका क्योंकि पानी की निकासी बगरस गाँव के पास बूढ़ी गंडक नदी में होनी थी और झील की पेंदी का लेवल बूढ़ी गंडक नदी के लेवल से नीचे था। इसलिये यहाँ से करीब 15 किलोमीटर नीचे जाकर पानी को नदी में गिराना पड़ गया। इतना करने के बाद भी इस 1400 एकड़ जमीन से पानी नहीं निकला।"
"उसके बाद काबर के आसपास के इलाके में खेती होने लगी थी। फिर बारिश के समय जो पानी झील में आता था, उसके साथ मिट्टी भी आने लगी थी और झील की तलहटी का लेवल ऊपर उठने लगा। धीरे-धीरे झील में मकई और गहूँ की खेती होने लगी। झील की पेटी ऊपर उठने से जल निकासी पर कुछ सकारात्मक प्रभाव पड़ा। फिर भी बगरस के निकट नदी ने अपना रास्ता बदल दिया और वह बगरस से कुछ दूर चली गयी।"
"यह इलाका पहले मुंगेर जिले में पड़ता था। जिलों के पुनर्गठन के बाद खगड़िया जिले में चला गया है जबकि काबर झील अब बेगूसराय जिले में है। खगड़िया के लोगों को झील के इस पानी से कोई खास फर्क नहीं पड़ता है, इसलिये उसकी निकासी में भी उनकी कोई खास दिलचस्पी नहीं है।"
"जब प्रथम पंचवर्षीय योजना में पानी की निकासी वाली नहर बनी तभी से उधर वाले लोग नहर में बाड़ लगा कर पानी को आगे बढ़ने नही देते थे और फिर मछली मारते थे। यही काम मछली मारने वाले काबर झील की पेंदी में जमा होने वाले पानी के साथ भी करते थे। शुरू के दिनों में मैं झील वाले हिस्से से लोगों को समझा-बुझा कर पानी की निकासी का रास्ता खुलवा दिया करता था। लेकिन झील में पानी रहे या उसकी निकासी कर दी जाये इस बात को लेकर खेती करने वालों और मछली मारने वालों हित विपरीत दिशा में जाते थे। इसलिये दोनों समुदायों के बीच तनाव बना रहता था।"
"2004 के बाद मैंने राजनीति से किनारा कर लिया। उसके बाद जो राजनीतिक पदों पर पहुंचे उनमें से कई लोग बाहर के थे और इस क्षेत्र में उनकी रुचि जितनी होनी चाहिये थी उतनी नहीं रह गयी। और तब विभिन्न दूसरे कारणों से भी राजनीति की दिशा ही बदल गयी। वैसे इतना तय है कि अगर यहाँ से झील का पानी किसी भी तरीके से अनियंत्रित होकर निकल जाता है तो वह निश्चित रूप से नीचे खगड़िया तक चोट करेगा और लोग तबाह होते रहेंगे।"
श्री राम जीवन सिंह