पटना में सोन और गंगा की बाढ़ के पानी के कारण 26 अगस्त से लेकर 30 अगस्त,1975 तक अख़बार भी नहीं छपे थे...
25 अगस्त के समाचार पत्र के प्रकाशन के बाद सर्चलाइट का कोई अंक बाढ़ के कारण फैली दुर्व्यवस्था के कारण 30 अगस्त तक नहीं छपा। उसका अगला अंक छठे दिन 31 अगस्त, 1975 को प्रकाश में आया। इस समय सरकार द्वारा किये जा रहे राहत कार्यो ने रफ्तार पकड़ ली थी।
इस वक्त तक बाढ़ का पानी घटा तो जरूर था लेकिन बहुत सी जगहों पर यह अभी तक 6 फुट से लेकर 10 फुट तक की गहराई में मौजूद भी था। पटना शहर में अभी भी बहुत से लोग घरों की छतों, छप्परों के ऊपर बने हुए थे। शहर में हुई क्षति का प्रारम्भिक अनुमान प्राय: 10 करोड़ रुपयों तक लगाया गया था। यह पहला मौका था जब पटना के वासियों ने घरों की छतों पर आदमी और जानवरों को एक साथ देखा था।
कुछ लोकल गाड़ियां अब चलने लगी थीं लेकिन हवाई यात्रा, नौ-परिवहन और सड़क परिवहन अभी भी रुका पड़ा हुआ था। पटना एक तैरता हुआ शहर बन गया था।
पिछले सोमवार (25 अगस्त) को सोन और गंगा नदी के पानी ने इस शहर की दुर्गति करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। बाढ़ ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिये थे, नदियों के पानी ने पश्चिम में रूपसपुर से लेकर राजेंद्र नगर तक पूरे इलाके को कमर से लेकर छाती भर पानी में डुबा रखा था। राजवंशी नगर, शास्त्री नगर, बोरिंग रोड, श्री कृष्ण नगर, मंदीरी, पटेल पथ, पाटलिपुत्र कॉलोनी अभी भी पानी से घिरी हुई थीं। इनमें से अधिकांश घरों का निचला तल्ला पानी में डूबा हुआ था।
बाढ़ के पानी ने कष्ट पहुंचाने में छोटे-बड़े, अमीर-गरीब के बीच में कोई फर्क नहीं किया और सबको समान भाव से तबाह किया। पाटलिपुत्र कॉलोनी और शास्त्री नगर संभ्रांत परिवारों की बस्तियां हैं और यहां के लोग अभी भी गहरे पानी से गिरे हुए थे। यहां बिजली नहीं थी, पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी, इन कॉलोनियों में रहने वाले लोगों को किसी भी सहायता के लिए पानी से होकर ही गुजरना पड़ता था और उनकी रातें बिजली के अभाव में जागते ही बीतती थीं।
यह कठिनाइयां सिर्फ केवल आम आदमियों के साथ नहीं थी, इसमें मुख्यमंत्री आवास और उनके सहयोगियों के घर भी बराबर के शरीक थे। न्यायाधीश और राज्य के बड़े अधिकारी भी इसी दौर से गुजर रहे थे। पटना-गया रोड, फ्रेजर रोड, गार्डेनर रोड तथा गर्दनीबाग रोड और उनके आसपास के इलाके अभी भी घुटने भर पानी में डूबे हुए थे। गांधी मैदान में कमर भर पानी भरा हुआ था। पटना रेडियो स्टेशन, टेलिफोन एक्सचेंज, समाचार पत्रों के दफ्तर, पटना का जनरल पोस्ट ऑफिस, विद्युत भवन और राजस्व भवन आदि में पानी भरा हुआ था।
इन सबसे मुक्ति पाने में बहुत समय लगने वाला था। आज सुबह जिला प्रशासन ने 3 लोगों की इस बाढ़ में शहर में मारे जाने की घटना की पुष्टि की लेकिन गैर सरकारी सूत्रों के अनुसार कम से कम एक दर्जन लोग तो इस बाढ़ में पटना में जरूर काम आये होंगे। दो लाशें तो अभी भी वीमेंस कॉलेज कंपाउंड और श्रीकृष्ण नगर में देखी जा रही थीं। बड़ी संख्या में शहर में जानवर भी मारे गए और ऐसा लगता है कि यह मौतें दो-तीन पहले ही हुई होंगी। इनकी पहचान अभी तक नहीं हो पायी थी। शहर में बड़ी संख्या में घर भी गिरे थे।
(Patna limping back to normal-Large areas still under water, The Searchlight-Patna, 31st August,1975, p-1. से अनूदित)