इस बाढ़ से कुछ दिन पहले ही देश में आपातकाल लागू कर दिया गया था जिसके कारण विक्षोभ के सारे स्वर दब गये थे और अधिकांश लोग सरकार की भाषा बोलने लगे थे। जो कभी थोड़ा भी मुखर रहा होगा वह या तो घरों में छुपा हुआ था या भाग गया था। किसी को बात करने की हिम्मत ही नहीं थी जिसका नतीजा यह था कि हम लोगों के घरों में रखा हुआ अनाज पानी में डूब कर सड़ गया। हर तरफ कोहराम मचा हुआ था और लोग दाने-दाने को मुहताज हो गये थे। ग्रामीण क्षेत्र में गीदड़गंज (यह गाँव एकमीघाट से 3 किलोमीटर उत्तर में है) से लेकर हायाघाट तक हर तरफ पानी ही पानी था।
शहर के लहेरियासराय के बीचो-बीच से एक छोटी नदी (बाहा) बहती थी जिस पर एक छकौड़ीलाल तटबन्ध बना हुआ था। यह नदी कुशेश्वर स्थान के पास सीधे कमला नदी में जाकर मिल जाती थी। इस बाढ़ में बाहा के तटबन्ध की धज्जियाँ उड़ गयी थीं और पानी की निकासी के सारे रास्ते बन्द हो गये थे। पिछले वक्तों में शहर का पानी इसी बाहा से अपने आप निकल जाया करता था और यह एक प्राकृतिक व्यवस्था थी। बेतरह तटबन्धों के निर्माण के कारण यह व्यवस्था ध्वंस कर दी गयी थी। सरकार की योजना थी कि इस पानी को समस्तीपुर के फुहिया गाँव के पास बागमती और कमला के बीच ले जाकर छोड़ दिया जाए।
उस समय देश में एमर्जेंसी लगी हुई थी और बहुत से लोगों के साथ मुझे भी आतंरिक सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था और मैं दरभंगा जेल में था जहाँ मंगनी लाल मंडल और देवेन्द्र प्रसाद यादव जैसे बड़े नेता पहले से ही मौजूद थे। बाढ़ का पानी जेल परिसर में भी घुस गया था और जेल परिसर तो हर तरफ से पानी से घिरा हुआ था ही। चारों ओर पानी होने से खाद्य पदार्थों की आपूर्ति बन्द हो गयी थी और जेल में खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं रह गयी। लगभग 20-22 लोग जेल की चारदीवारी फाँद कर भागने में कामयाब हो गये थे। हम लोग मीसा में बन्द थे अतः हमारी पेशी पटना हाईकोर्ट में होनी थी। यह एक बहाना था कि हमें दरभंगा से पटना भेज दिया जाता। ऐसा ही एक जत्था लेकर कुछ सिपाही हमें दरभंगा से पटना के लिये रेल से रवाना हुए। उनमें से कुछ हम लोगों के परिचित भी थे। उनमें से एक सत्य नारायण यादव मधुबनी का था और मंगनी लाल मंडल का परिचित था। उसकी वजह से रेल द्वारा 22 घंटे की यात्रा कर के हम लोग पटना पहुँचे। रास्ते में गाडी कहाँ रुक जायेगी इसका कोई भरोसा नहीं था और आगे जायेगी भी या नहीं यह भी तय नहीं था।
एक रात हम लोग सभी सिपाहियों के साथ समस्तीपुर स्टेशन पर एक सामान्य यात्री की भांति प्लेटफार्म पर सोये थे। हमारे साथ ही हमारी सुरक्षा में लगे सिपाही भी साथ ही सोये थे। सिपाही हमारे खाने-पीने का इन्तजाम करते थे जो चना–गुड़ से ज्यादा क्या होता होगा, आप समझ सकते हैं। कुछ पैसा हम लोगों के पास भी था तो एक शाम समस्तीपुर में स्टेशन के बाहर होटल में खाना खा लिया था। पटना पहुँचने पर पता लगा कि वहाँ भी बाढ़ का पानी शहर में घुसा हुआ था। किस्मत से बांकीपुर जेल में पानी नहीं था मगर पटना का पश्चिमी भाग तो डूबा ही हुआ था। हालात यहाँ भी अच्छे नहीं थे मगर दरभंगा जेल से स्थिति बेहतर थी। यहाँ पहुँच कर शहर में बाहर क्या हो रहा था उसकी तो सुनी-सुनायी खबरें ही मिलती थीं मगर रेल से आते हुए रास्ते में जो कुछ हम लोगों ने देखा था वह तो भयावह था।
श्री उमेश राय