(बिहार-बा़ढ़-सूखा और अकाल)
30 जुलाई, 1973 के दिन बिहार विधानसभा में सुखाड़ पर बहस चल रही थी। वक्ता थे छपरा से विधायक सभापति सिंह। उन्होनें सदन में बिना किसी लाग-लपेट के कहा कि,
"इस राज्य का दुर्भाग्य है कि इस तरह की गैर-अनुभवी सरकार हम लोगों के सिर पर बैठी है...भैंस पशुओं में सबसे मूर्ख समझी जाती है, वही हालत इस सरकार की है...आजादी के बाद 25 वर्ष तक आपकी हुकूमत यहाँ रही है और सिंचाई की व्यवस्था आज नहीं है, तो इस स्थिति के लिये कौन जिम्मेदार है? उन्होनें कहा कि हम बहुत सतर्क हैं। मैं मानता हूँ। दरअसल आप खाद्य और आपूर्ति मंत्री नहीं हैं, अकाल मंत्री हैं। हम लोग समझते हैं कि कुछ शख्स ऐसे होते हैं जिनको देख कर यात्रा करने से यात्रा बिगड़ जाती है। आज आप कुर्सी पर आ गये हैं तो इसके चलते सारे बिहार की स्थिति बिगड़ गयी है...1967-68 में जब अकाल की स्थिति पैदा हुई थी उससे भी आज स्थिति ज्यादा भयंकर है। सन् 67-68 में जो नक्शा बनाया गया था, पानी उपलब्ध करने के लिये जो रिंग मशीन द्वारा पहाड़ को छेद कर पानी की व्यवस्था की गयी थी, उस तरह का नक्शा यदि आज सदन में रखा जाता तो बात समझ में आती। बिहार से हिंदुस्तान को काफी आमदनी होती है। महाराष्ट्र में जब इससे भी कम अकाल हुआ तो भारत सरकार ने 76.20 करोड़ (रुपये) की मदद दी थी, मगर जब हमारे यहाँ उससे भी ज्यादा गम्भीर स्थिति थी तो सिर्फ 10 करोड़ की मदद मिली थी। बिहार सरकार की अक्षमता के कारण भारत सरकार से सही मदद नहीं मिल पाती है। फखरुद्दीन साहब या हिंदुस्तान के प्रधान मंत्री उनके कहने पर पैसा या गल्ला मुहय्या नहीं करने जा रहे हैं। आप बिहार को बचा नहीं पायेँगें। कुछ वर्षा हो गयी तो आप यश लेना चाहते हैं...क्या सरकार वर्षा पर निर्भर करेगी?’