आर्यावर्त पटना अपने सम्पादकीय में 'बाढ़ और सूखा-दोनों का प्रकोप' शीर्षक से लिखता है, बिहार इस समय बाढ़ और सूखा दोनों का शिकार बन रहा है। कोसी और महानन्दा की बाढ़ से दरभंगा, पूर्णिया और सहरसा लगभग के लगभग पांच गांवों के ढाई लाख निवासी बाढ़ की चपेट में आकर घोर संकट का सामना कर रहे हैं। इस सम्बन्ध की एक रिपोर्ट के अनुसार महानन्दा की बाढ़ से किशनगंज (पूर्णिया) सब-डिवीजन के चार प्रखंडों के स्थिति अत्यधिक चिन्ताजनक है।
कोसी और उसके तटबन्धों के बीच में पड़ने वाले गांव तो जल-मग्न हो ही चुके हैं। निर्मली और मरौना (दोनों सहरसा जिले में) तथा मधेपुर और कुशेश्वरस्थान (दरभंगा जिला) संकट की स्थिति में आ गये हैं। कमला-बलान तथा उत्तर बिहार की दूसरी नदियों में भी पानी बढ़ता जा रहा है।
सूखे का प्रकोप तो सारे राज्य में है और यह भयंकर अकाल की चेतावनी भी देने लगा है। इस समय सावन का महीना बीत रहा है और अब अगहनी धान की पचहत्तर से अस्सी प्रतिशत खेती इस राज्य में सम्पन्न हो जाती थी किन्तु इस बार अब तक कहीं धान का बीज तक तैयार नहीं हो पाया है और जो बीज खेतों में उगे थे वह पानी के अभाव में सूख चले।
ग्रामीण क्षेत्रों से हमें जो रिपोर्ट मिली है वह तो बहुत ही भयानक है। मजदूर वर्ग के लोगों को काम नहीं मिल रहा है फलत: उनके परिवार में कई-कई दिनों तक लोग भूखे रह रहे हैं। इस ओर राज्य सरकार का ध्यान कहां तक गया है, यह हमें नहीं मालूम किन्तु यदि काम और अनाज के वितरण का प्रबन्ध अविलम्ब नहीं किया गया तो भुखमरी भयावह रूप ले लेगी।
यह ऐसा समय है जब राज्य सरकार को अन्य सभी कामों को छोड़ कर बाढ़ और सूखे की समस्याओं के समाधान में लगना चाहिये। जब सूखा कभी-कभी पड़े तो इसका सामना लोग कर भी सकते हैं किन्तु जब यह लगातार पड़ता हो तो उसका सामना करने की शक्ति भी उत्तरोत्तर क्षीण होती जाती है। बिहार का यह सूखा ऐसी ही स्थिति ला सकता है, इसलिए इसकी भयानकता को नजरअंदाज बिल्कुल नहीं करना चाहिये।