विश्व भर में कोरोना वायरस ने करोड़ों लोगों को अपनी चपेट में लिया हुआ है, लाखों इसके चलते दम तोड़ चुके हैं. भारत में भी कोरोना पीड़ितों की संख्या लगातार बढती जा रही है, फिलवक्त तक इसके आंकडे बढ़कर डेढ़ लाख तक जा पहुंचे हैं और मरने वालों का आंकड़ा भी बढ़ा है. कोरोना की वैक्सीन खोजने की तैयारी हर देश अपने अपने स्तर पर कर रहा है लेकिन साल का लगभग आधा वक्त निकलने के बावजूद भी अभी कोरोना महामारी के इलाज में कोई बड़ी कामयाबी हाथ नहीं लग पाई है.
पर हाल ही में आईआईटी- बीएचयू में सिविल इंजीनियरिंग के पूर्व प्रोफेसर एवं गंगा रिसर्च यू के चौधरी ने दावा किया है कि गंगा के पानी में बैक्टीरियोफेज पाया जाता है, जो कोरोना के संक्रमण को रोक सकता है. गौरतलब है कि यूं भी गंगाजल को अपने गुणकारी औषधीय तत्वों के कारण प्राकृतिक सैनिटाइजर भी कहा जाता है. प्रोफेसर यूके चौधरी ने बताया है कि वेद, पुराणों और उपनिषदों में गंगाजल को औषधीय जल माना गया है. वैज्ञानिक भी मानते हैं कि गंगाजल में ऐसे जीवाणु पाए जाते हैं जो बीमारी फैलाने वाले पेथोजंस (रोगजनक) को खत्म करते हैं.
प्रोफेसर चौधरी के शोध के अनुसार नदियों के उद्गम स्थल के आधार पर उनके जल के गुण का पता चलता है. जैसे जिस नदी का उद्गम जितना अधिक ऊँचाई और गहराई पर होगा, उसका औषधीय प्रभाव भी उतना ही अधिक होगा. गंगा, जिसका उद्गम गौमुख से होता है वह अत्याधिक ऊंचाई और पहाड़ों की गहराई में स्थित है, जिसके चलते यह अपने आप में एक कुदरती सैनिटाइजर का कार्य करता है. यही कारण है कि गंगाजल कभी भी खराब नहीं होता है. प्रो चौधरी कहते हैं कि गंगाजल मात्र पेयजल नहीं है बल्कि सभी रोगों को समाप्त करने की औषधि है और सरकार को इसके संरक्षण को आदर्श सिद्धांतों के अनुकूल होकर करना होगा तभी देश को विभिन्न संक्रमणों से मुक्त रखा जा सकता है.
प्रोफेसर उदयकांत चौधरी के गंगाजल - एक कुदरती सैनिटाइजर लेख की मूल कॉपी पढने के लिए यहां क्लिक करें.