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कर्म, अकर्म और विकर्म गीता की मानवीय ज्ञान-शक्ति के संबंध का विश्लेषण है. यही गंगा की कर्म और अकर्म शक्ति को गंगाजल के बैक्टेरियोफेज सहित अन्य गुणों को तथा गंगाजल के दोहन और शोषण रूपी गंगाजल के विकर्म रूप कोरोना वायरस के प्रगटीकरण का संबंध है.
हे भोलेनाथ ! आँख-नाक-कान आदि विभिन्न आकारों-प्रकारों तथा उनके स्थानों के साथ अपनी इन्द्रियों को उनकी विभिन्न तरंगों, संवेदनाओं के साथ दे रखा है. ये तरंगे निरंतरता के साथ शरीर में चाहे अनचाहे अन्दर-बाहर करते सम्पूर्ण शरीर को विभिन्न आवर्तियों एवं आयामों से कपकपाते रहते हैं. इस डोलम-डोल की स्थिति में बल पूर्वक बुद्धि लगाकर कोशिका को व्यवस्थित कर अर्थात् केंद्र को निर्धारित कर कार्य को कर लेना कर्म है. इस कर्म का कुछ परिणाम होगा ही होगा क्योंकि कर्म अविनाशी होता है. यदि यह कर्म बिना किसी स्वार्थ के किया जाए या आप के लिये किया जाए (जो पूर्ण ज्ञान, अटल कोशिका व्यवस्था के तहत हो) तो यह कार्य बिना बंधन का अकर्म है. यदि कार्य बिना किसी नियम का अनुसरण करते और प्रकृति से साथ समन्वय स्थापित किये बगैर किया जाए तो यह विकर्म कहलाता है. इसकी भयावह प्रतिक्रिया से भीषण कष्ट का होना ही बीमारियों का होना है. क्या यही कोरोना वायरस है भोलेनाथ? इस तरह कर्म होता क्या? क्या इसी कर्म को जानने के लिये भगवान श्रीकृष्ण ने यह कहा है :
कर्मणो ह्यपि बोधव्यं बोधव्यं च विकर्मणः । अकर्मणश्च वोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः ।। गीता : 4.17 ।।
कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिये और अकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए तथा विकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिये क्योंकि कर्म की गति गहन है.
हे गंगाधर ! हे हलाहल विष को सरलता से पी लेने वाले भोलेनाथ ! कृपा कर समझाने की कृपा किजिये कि गंगा का कर्म, अकर्म और विकर्म क्या है? क्या गंगा का कर्म इसके उदगम स्थल की स्थैतिक ऊर्जा से परिभाषित होता है? क्या यह गिरिराज हिमवान की समस्त नदियों के उदगम स्थलियों मे सबसे ऊँचे स्थान का द्योतक है? क्या यह गंगाजल की अधिकतम गहराई के शुद्धतम और बैक्टेरियोफेज से संतृप्त भूजल का गुण है? क्या यह इसके जल की गतिज-ऊर्जा और प्रवाह स्तर की विशेषता है? या क्या यह अन्य कतिपय नदियों को अपने से समागम करते अपनें वक्रगामी पथ के कार्य का अलग अलग समीकरण का प्रकटीकरण है? क्या निःस्वार्थता से गंगा प्रवाह की निरंतरता इसकी समस्त कर्म करते कुछ नहीं करने की अकर्म का सम्बोधन है और भीमगोडा, बिजनौर और नरोरा बैरेजेज से समस्त बैक्टेरियोफेज-युक्त उदगम जल का दोहन और असंख्य अवजल स्रोतों का अवैज्ञानिक मिलन गंगा का गंगा में विकर्म कर्म. क्या यही है गंगा के कर्म, अकर्म को इसमें हो रहे विकर्म द्वारा विनष्ट होना? यही है बैक्टेरियोफेज का विनष्ट होना और कोरोना वायरस का प्रकटीकरण.