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शिवपाल सावरिया-राम प्रसाद बिस्मिल जी दिवस राम प्रसाद बिस्मिल जी दिवस राम प्रसाद बिस्मिल जी पर उन्हें शत शत नमन

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  • December-19-2021

भारत मां के वीर सपूतो का जिक्र जब भी आता है, तब हम राम प्रसाद बिस्मिल का नाम जरूर लेते हैं। राम प्रसाद बिस्मिल न केवल एक महान क्रांतिकारी थे बल्कि एक ऐसे कवि भी थे जिन्होंने उच्च वर्ग के लेखकों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया। उन्होंने ब्रिटिश सरकार को साहस और समझ के साथ हरा दिया। भारत की स्वतंत्रता के लिए केवल 30 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई।

अपने उपनाम बिस्मिल के अलावा उन्होंने राम और अज्ञात नाम से भी लेख और कविताएँ लिखीं। उनकी प्रसिद्ध कृति सरफरोशी की तमन्ना गाते हुए, राष्ट्रीय स्वतंत्रता के अनेक क्रांतिकारियों को फाँसी पर लटका दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिलका मैनपुरी कांड और काकोरी कांड का प्रदर्शन कर ब्रिटिश साम्राज्य को झकझोर कर रख दिया था। लगभग 11 वर्षों के अपने क्रांतिकारी करियर के दौरान उन्होंने कई किताबें लिखीं और उन्हें स्वयं प्रकाशित किया। अपने जीवनकाल में उनके द्वारा प्रकाशित लगभग सभी पुस्तकें ब्रिटिश सरकार द्वारा जब्त कर ली गईं।

प्रारंभिक जीवन व शिक्षा

स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल्लाह का जन्म 11 जून 1897 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम मुरलीधर और माता का नाम मूलमती था। उनके पिता राम भक्त थे इसलिए उनका नाम राम प्रसाद रखा गया। ज्योतिषियों का अनुमान है कि बिस्मिल के नक्षत्र को देखकर भले ही लड़के की जान बच जाए लेकिन दुनिया की कोई भी ताकत उसे सम्राट बनने से नहीं रोक सकती।

बिस्मिल को बचपन में हिंदी सीखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी, जिससे उनकी प्रारंभिक शिक्षा उर्दू में हुई। मिडिल स्कूल की परीक्षा में फेल होने के बाद उन्होंने अंग्रेजी सीखना शुरू किया। साथ ही उन्होंने अपने पड़ोसि से पूजा की मूल बातें सीखीं और उससे सीख लेकर अपने व्यक्तित्व को प्रभावित किया। उन्होंने जीवन भर ब्रहम्चर्य का पालन किया। और व्यायाम को अपना कर बुरी आदतों का त्याग दिया। उसके बाद उनका मन पढ़ाई मे लगने  लगा, और वे अंग्रेजी में पांचवें स्थान पर रहे।

मैनपुरी की घटना

रामप्रसाद बिस्मिल ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद से लड़ने और देश को आजाद कराने के लिए मातृदेवी नामक एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की। इस काम के लिए उन्हें औरैया पंडित गेंदा लाल दीक्षित से मदद मिली। दोनों ने आगरा, शाहजहांपुर, इटावा के युवाओं को देश की सेवा के लिए संगठित किया। जनवरी 1918 में बिस्मिल ने देशवसीयों के नाम संदेश पैम्फलेट प्रकाशित किया, जिसका वितरण वो अपनी कविता के साथ करने लगे। 1918 में उन्होंने संगठन को मजबूत करने के लिए 3 डकैतियों को अंजाम दिया।

काकोरी कांड

बिस्मिल ने पार्टी की जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई और 9 सितंबर को काकोरी स्टेशन में 10 लोगों (चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्लाह खान, केशव चक्रवर्ती, मुरारी शर्मा, राजेंद्र लाहिडी, शाचिन्द्रनाथ बख्शी, मन्मथनाथ कुमार, मुकुंदी लाल और बनवारी लाल)  के साथ सरकारी खजाना निकाल दिया। 26 सितंबर 1925 को देश भर में काकोरी कांड में बिस्मिल सहित 40 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया था।

फांसी की सजा

राम प्रसाद बिस्मिल, असफाक उल्लाह खान, राजेंद्र लाहिडी, रोशन सिंह को साथ मौत की सजा सुनाई गई थी। 19 दिसंबर 1927 को कोराकूपुर जेल में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया था। जब बिस्मिल को फांसी दी गई थी तब हजारों लोग जेल के बाहर उनकी अंतिम यात्रा का इंतजार कर रहे थे। अंतिम संस्कार में हजारों लोग शामिल हुए और वैदिक मंत्रोच्चार के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया।

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