कहते हैं कि जो होता है अच्छे के लिए ही होता है लेकिन मैं या कोई भी सभ्य व्यक्ति या समूह वैश्विक महामारी कोरोना को अच्छा नहीं मान सकता क्योंकि इससे संकट मानव जीवन पर उत्पन्न हुआ है। हाँ, इस महामारी के स्याह और सफेद पहलुओं पर चर्चा अवश्य की जा सकती है।
इसका बुरा पक्ष यह है कि तमाम विश्व इसकी चपेट में है। लाखों लोग इसके संक्रमणकाल से गुजर रहे हैं और हजारों काल के गाल में समा चुके हैं। इस महामारी से लाखों ठीक भी हो रहे हैं लेकिन इसका कोई सटीक इलाज या नुस्खा अभी किसी के पास नहीं है। बहुत से देश प्रयास अवश्य कर रहे हैं कि कोई सटीक दवाई बना ली जाए। इस महामारी ने अमेरिका जैसे शूरमा को धराशाही कर दिया है। अभी कोई भी व्यक्ति या संस्था इस स्थिति में नहीं है कि इससे होने वाली जन-धन हानि का सटीक अनुमान लगा सके।
कोरोना के कारण कुछ अच्छा भी हुआ है या यूं कहें कि प्रकृति ने दृढ़ता के साथ यह संकेत दिया है कि ऐसा नहीं हो सकता कि मानव अपनी मनमानी करता रहे और प्रकृति को हानि पहुंचता रहे। यूँ तो विश्वभर के देशों से लगातार खबरें आ रही हैं कि कोरोना के कारण हुई बंदी से वातावरण पुनः सजीव हो उठा है लेकिन जब से भारत सरकार द्वारा तालाबंदी के सिलसिला प्रारम्भ हुआ है तब से प्रकृति हित की खबरें लगातार आ रही हैं।
जो जंगली जानवर जंगल में मुश्किल से दिखते थे वे आज नोएडा, देहरादून व हरिद्वार सहित अन्य शहरों की सड़कों पर विचरण कर रहे हैं, उड़ीसा के समुन्द्र से निकलकर तट पर हजारों की संख्या में कछुएं रेती में अंडे देने आ गए। पीर-पंजाल की पहाड़ियां डोर से नज़र आ रही हैं। शहरों में वायु प्रदूषण नगण्य हो गया है। हरिद्वार में हर की पैड़ियों पर गंगा की स्वच्छ-निर्मल धारा देखकर लोग अचंभित हैं। ध्वनि प्रदूषण मानों छुट्टी पर है। सड़कें साफ-सुथरी दिख रही हैं। घरों में पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी है।
यहां सबसे बड़ा ताज्जुब यह है कि यह सब बगैर किसी प्रोजेक्ट में पैसा खर्च किये हो रहा है। कोरोना के कारण चल रही बंदी में यह सब जो हो रहा है वह एक सीख सभी को दे रहा है कि प्रकृति के साथ मानव को अपना दखल न के बराबर या समाप्त करना होगा, क्योंकि ऐसा करने से लोग कम बीमार होंगे और स्वस्थ होंगे। भूटान देश पूरे विश्व के सामने एक उदाहरण बनकर खड़ा है।
यह समय आमजन व सरकारों सभी के लिए बहुत कुछ सीख व समझ लेने का है कि प्रकृति से हम लड़ नहीं सकते हैं बल्कि उसके साथ तालमेल बैठाकर कार्य करने में ही पूरी मानव जाति की भलाई है। वैसे तो विश्व के अन्य देश भी प्रकृति के इस संदेश को समझ रहे होंगे लेकिन ऐसे में भारत अपने पुरातन ऋषि परंपरा ज्ञान से विश्व का नेतृत्व कर सकता है। आज की स्थिति हमें लगातार प्रकृति संरक्षण का ही संदेश दे रही है और विश्व पर्यावरण दिवस पर भी हमें यही संकल्प लेना है कि प्रकृति के साथ मनमानी करके नहीं बल्कि तालमेल मिलाकर हमें चलना होगा।