वर्तमान समय में प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ता दबाव हमारे प्राकृतिक जल स्त्रोतों के लिए खतरा बनता जा रहा है। नीर फाउंडेशन के निदेशक व संस्थापक नदीपुत्र रमन कान्त के अनुसार विश्व के कुल भूभाग का लगभग ढाई प्रतिशत क्षेत्रफल भारत के पास है और दुनिया की 18 फीसदी आबादी इसमें निवास करती है, जाहिर सी बात है अतिरिक्त आबादी का यह बोझ हमारे कुदरती संसाधनों पर काफी अधिक है।
वर्ष 1952 के मुकाबले आज देखें तो भारत में पानी की उपलब्धता घटते घटते एक तिहाई रह गई है लेकिन आबादी इसके ठीक विपरीत 36 करोड़ से बढ़कर 136 करोड़ का आँकड़े को छूने के लिए तैयार बैठी है। अब मात्र नदियों, नहरों या ताल-तालाबों से तो इतनी अधिक आबादी की जलापूर्ति नहीं हो सकती लिहाजा अब भूमिगत जल पर हमारी निर्भरता बढ़ती जा रही है और इसके चलते भूमिगत जल भी प्रति वर्ष एक फुट की दर से नीचे खिसक रहा है। उत्तर भारत में आजन तकरीबन 15 करोड़ लोगों के सामने बड़ा जल संकट खड़ा है।
2050 तक हालात इससे भी अधिक बदतर हो जाएंगे क्योंकि भारत कृषि प्रधान देश है और ऐसे में कृषि के लिए उपयुक्त होने वाले जल पर हमारी निर्भरता काफी अधिक है। अब आवश्यकता है कि हम भूजल को ग्रहण करने और उसके वापस लौटने के अनुपात को बरकरार रखें। ग्राम व शहरों में वर्षा जल संरक्षण से यह कार्य किया जा सकता है। ग्रामों में जहां तालाब, जोहड़ों इत्यादि को पुनर्जीवित कर वहां वर्षा जल को संरक्षित किया जा सकता है तो शहरों में भी इसके लिए प्रयास जरूरी हैं।
आज हमें भूजल उपयोग के लिए कड़े कानूनों के निर्माण की अत्याधिक जरूरत है। क्योंकि हम आज पेयजल को ही सभी कार्यों में उपयोग में ला रहे हैं, हमें चाहिए कि सिंचाई, उद्योगों और घरों में होने वाले कार्यों में शहरों व कस्बों से निकले सीवेज जल को संशोधित कर उसका उपयोग किया जाए ताकि भूजल पर पड़ने वाले अतिरिक्त दबाव को कम किया जा सके।