प्रकृति हमें मुफ़्त में हवा, पानी, रोशनी इत्यादि अनेकों वस्तुएं प्रदान करती है इसलिए हम सभी की भी जिम्मेदारी बनती है कि हम भी प्रकृति को कुछ वापस करें। यह कहना है नीर फाउंडेशन के संस्थापक नदी पुत्र रमन कांत का, जो एनएएस पीजी कोलीगे में आयोजित विश्व गौरेया दिवस पर आयोजित संगोष्ठी में बोल रहे थे।
अंतर्राष्ट्रीय गौरेया दिवस के आयोजन में मेरठ के कालचक्र इतिहास परिषद एवं सांख्यिकी परिषद एन ए एस कॉलेज के संयुक्त तत्वावधान में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया था। जिसमें मुख्य अतिथि के तौर पर पद्म विभूषण डॉ अनिल जोशी और विशिष्ट अतिथि के रूप में नदीपुत्र श्री रमन कांत त्यागी सम्मिलित हुए थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता नानक चंद ट्रस्ट के सचिव श्री अमित शर्मा के द्वारा की गई। संयोजक डा. देवेश चन्द्र शर्मा ने गौरेया संरक्षण अभियान की जानकारी दी। संचालन डा. नवीन गुप्ता ने किया। कालेज के प्राचार्य मनोज अग्रवाल सहित अन्य रहे। गौरेया पर डा. विवेक त्यागी ने एक फ़िल्म भी दिखाई।
इस मौके पर पर्यावरणविद पद्मश्री डॉ अनिल जोशी ने कहा कि मनुष्य अपने आस पास की प्राकृतिक चीजों को समाप्त कर रहा है, हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ भी नहीं छोड़ रहे हैं। यदि हमें खुद को बचाना है तो पर्यावरण को लेकर जन आंदोलन करना होगा और अपनी जिम्मेदारी तय करनी होगी कि हम प्रकृति को क्या दे रहे हैं। साथ ही उन्होंने गौरेया का प्रकृति परिवर्तन के प्रतीकात्मक के रूप में रखते हुए कहा कि आज यदि गौरेया हमारे बीच से जा रही है तो इसका अर्थ है कि हमें भी इसका भारी नुकसान उठाना होगा। केदारनाथ में हुई आपदा और कोरोना का आना इंसान की अतिवादी प्रवृति का ही उदाहरण है।