कोरोना महामारी के इस विकट समय में अच्छे मानसून की खबर सुकून देने वाली है। यह इस संकट से उबरने का एक अच्छा अवसर खुद में समेटे है। अब जबकि मानसून तेजी से देश में आगे बढ़ रहा है तो देश को विगत वर्षों से कहीं अधिक सतर्कता के साथ तैयार हो जाना चाहिए। हमारी तैयारी ऐसी हो कि बरसात की एक-एक बूंद जहां भी बरसे उसे वहीं एकत्र कर लिया जाये व संरक्षित किया जा सके। यह कार्य प्रत्येक व्यक्ति को करने की जरूरत है। भारत सरकार और रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास कोरोना पीड़ित अर्थव्यवस्था के उभार में कृषि के योगदान को ही अहम मान रहे हैं।
हमें जल संरक्षण की ऐसी व्यवस्थाएं अपनानी होंगी, जिनसे गांव के पानी को गांव में व खेत के पानी को खेत में ही रोक दिया जाए। गांव व खेत के सभी तालाबों को इस लायक बनाना होगा कि उनमें एकत्र होने वाला पानी संरक्षित रह सके। तालाबों के आसपास का पानी भी उनमें आकर एकत्र हो सके इसके लिए नालियों को दुरुस्त करना होगा। तालाब पुनर्जीवन के इस कार्य में अभी से लग जाना होगा। खेत तालाबों की भूमिका इसलिए अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि जहां भू-जल स्तर अधिक गहराई में चला गया है वहां सिंचाई का साधन या तो वर्षा है या फिर वर्षा के दौरान खेत तालाब में एकत्र किया गया वर्षाजल। इसके लिए खेत तालाबों को सुदृढ़ करना अधिक आवश्यक है।
खेतों की मेड़बंदी भी वर्षाजल को खेतों में अधिक समय तक रोकने का बेहतर उपाय है, इसके लिए नीति आयोग द्वारा चुने गए उत्तर प्रदेश के जल गांव 'जखनी' का मॉडल (हर खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़) सभी गांवों में अपनाना होगा। कोरोना महामारी के खौफ के चलते उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश व पश्चिम बंगाल राज्यों से अधिक संख्या में कामगार शहरों से गांव की ओर लौटा है, उनको अगर गांव में जल संरक्षण के कार्यों में लगाया जाये तो इससे जहां उनके लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे वहीं बरसात की बूंदों को सहेजने की व्यवस्था भी बन जाएगी। इन कामगारों को छोटी नदियों व बरसाती नालों की सफाई में भी लगाया जा सकता है।
अगर छोटी नदियों व बरसाती नालों के मार्ग से अवरोध हट जाएंगे तो अतिरिक्त वर्षाजल को बहने का सुगम रास्ता मिल जाएगा और हमारे ये साधन भी पुनर्जीवित हो जाएंगे। इससे बाढ़ के खतरे को भी कम किया जा सकता है। महाराष्ट्र, गुजरात व तमिलनाडू जैसे बड़े राज्य जहां कोरोना की मार सर्वाधिक है इनमें वर्षाजल की बूंदों को सहेजने के कार्य को बड़े स्तर पर चलाया जाना चाहिए। हम अगर ऐसा कर पाए तो जहां भू-जल स्तर में सुधार होगा वहीं खेतों में नमी अधिक समय तक रहने से फसलों की पैदावार भी अच्छी होगी। अगर हम बरसात के बहते पानी को रोक पाए तो बाढ़ की समस्या से भी कुछ राहत अवश्य मिलेगी। ऐसा होने से कोरोना महामारी की टीस पर कृषि उपज का मरहम लगाया जा सकेगा।
मानसून के दौरान बरसने वाले जल का संरक्षण करना उद्योगों के लिए अनिवार्य तो है लेकिन उसको एकत्र करके उसका उपयोग भी अनिवार्य बनाना चाहिए, क्योंकि उद्योग केवल भू-जल का इस्तेमाल करते हैं। एक गन्ना मिल या गत्ता मिल एक दिन में लाखों लीटर भू-जल खींच लेती है जिसकी भरपाई नाम मात्र के लिए ही की जाती है। उद्योग अगर अपने परिसर में वर्षाजल को बड़े स्तर पर रोकने की व्यवस्था करें तो उसका इस्तेमाल वे स्वयं कर सकते हैं। इससे जहां भू-जल पर दबाव कम होगा वहीं उसके प्रदूषण की समस्या से भी किसी हद तक छुटकारा मिलेगा। ऊर्जा की खपत भी कम होगी।