ऐतिहासिक नगरी हस्तिनापुर में पांडवकालीन टीले के ऊपर मौजूद है एक चमत्कारिक कुआं, जिसको अमृत कूप के नाम से जाना जाता है। पांडव टीले पर शक्तिपीठ जयंतीमाता मंदिर से सौ मीटर की दूरी पर मौजूद यह कुआं एक पगडंडी की किनारे मौजूद है, जिसमें आज भी पानी मौजूद है। आज भी श्रद्धालु दूर-दूर से इसके पानी में स्नान करने की इच्छा से आते ही रहते हैं। जो श्रद्धालु सातेफेरी के मेले के दौरान हस्तिनापुर में द्रौपदी घाट पर स्नान करने के लिए आते हैं वे इस कुएं के पानी से भी स्नान करने आते रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि इस कुएं के जल का स्रोत गंगा नदी से मिला हुआ है। कभी गंगा नदी इस पाण्डवटीले के निकट से ही होकर बहती थी जोकि अब यहां से लगभग पांच किलोमीटर दूर बहने लगी है।
टीले के आस-पास की दलदली भूमि को ही आज बूढ़ी गंगा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस कुएं से ओम मंत्र की ध्वनि भी आती है। किवंदन्तियाँ हैं कि इस कुएं को पांडवों ने बनवाया था और इसके जल से द्रौपदी भी स्नान किया करती थीं। एक बार रानी लक्ष्मी बाई के कोई रिश्तेदार व कीच क्रांतिकारी भी इस कुएं की महिमा सुनकर यहां आए थे और कुछ दिन यहीं रुके भी थे। वे जिस आश्रम में रुके थे उसको आज रघुनाथ महल के नाम से जाना जाता है। इस कुएं की महिमा जानकर राजा नैन सिंह द्वारा इस कुएं का जीर्णोद्धार कराया गया था।
वर्तमान में भी इस कुएं की मान्यता बनी हुई है, यही कारण है कि भारत सरकार के गंगा पुनर्जीवन के लिए बनाए गए विभाग नमामि गंगे के तहत चलने वाले कार्यक्रम 'रग-रग में गंगा' में भी इस कुएं की महिमा को दर्शाया गया है। हस्तिनापुर की पावन धरा को नमन।
- नदीपुत्र रमनकांत त्यागी